Gautam Buddha Biography: गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। गौतम बुद्ध बहुत महान, अच्छे तथा सच्चे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे। इनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है। ये अपनी समस्त जनता को प्रसन्न देखना चाहते थे। ये बहुत ही नम्र स्वभाव के प्राणी थे। इन्होंने तपस्या करके अनेक प्रकार की दिव्य शक्तियां और ज्ञान की प्राप्ति की तथा संपूर्ण भारत में भ्रमण करते हुए अपने ज्ञान का प्रचार-प्रसार किया। और लोगों को अंधकार भरे जीवन से उभारा इनके जैसे महान व्यक्तित्व वाला व्यक्ति अभी तक दुनिया में नहीं जन्मा। ये सभी ब्राह्मणों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। गौतम बुद्ध की कुछ अमूल्य शिक्षाएं जो जीवन में सकारात्मक ऊर्जा लेकर आएंगी…
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गौतम बुद्ध का जन्म
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) का जन्म 563 ईसा पूर्व में शाक्य राज्य के लुंबिनी शहर में हुआ था। गौतम बुद्ध पालन पोषण वर्तमान समय नेपाल में कपिलवस्तु के लुंबिनी नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शुद्धोधन (Shuddhodhan) था, जो शाक्य गणराज्य के राजा थे। इनके माता का नाम महामाया (Mahamaya) था, जो कोलीय वंश की थी। गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था। गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) बचपन से ही शांत और गंभीर स्वभाव के थे। वे अपना अधिकांश समय एकांत में बैठने और चिंतन करने में बिताते थे।
गौतम बुद्ध का प्रारंभिक जीवन
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के प्रारंभिक जीवन में अनेक कठिनाई आई गौतम बुद्ध के जन्म के कुछ दिन बाद उनकी माता महामाया का देहांत हो गया। इनका पालन-पोषण माता विमाता महा प्रजापति गौतमी ने किया। सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग दिया।
इस त्याग को बौद्ध ग्रंथों में महाभिनिष्क्रमण कहा गया। गृह त्याग के उपरांत सर्वप्रथम वे वैशाली के नजदीक आलारकलाम के आश्रम में आये। और वहां से उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किए। आलारकलाम सांख्य दर्शन का आचार्य था। तथा अपनी साधना शक्ति के लिए जाना जाता था और यहां सिद्धार्थ को कौण्डिन्य आदि 5 साधक मिले।
गौतम बुद्ध की पत्नी का नाम
गौतम बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा (Yashodhara) था जो शाक्य कुल की कन्या थी। 16 साल की अवस्था में गौतम बुद्ध का विवाह हो गया था। उनकी पत्नी का अन्य नाम बिम्बा, गोपा भी था। गौतम बुद्ध के पुत्र का नाम राहुल था।
गौतम बुद्ध की शिक्षा
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) की प्रारंभिक शिक्षा राजमहल में ही हुई। लेकिन जब वे थोड़े बड़े हुए तो पिता ने उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के लिए गुरु विश्वामित्र के पास भेज दिया था। बुद्ध ने गुरु विश्वामित्र से वेद और उपनिषदों की शिक्षा ग्रहण की। धीरे-धीरे वे एक आदर्श शिष्य बन गए।
गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) बिना अन्न जल ग्रहण किए हुए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की रात बोधगया (बिहार) में एक पीपल के वृक्ष के नीचे गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) को ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्हें बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा। गौतम बुद्ध का एक अन्य नाम तथागत भी मिलता है। तथागत का अर्थ है- सत्य है ज्ञान जिसका, गौतम बुद्ध का शाक्यमुनि के रूप में भी वर्णन मिलता है।
गौतम बुद्ध के शिष्य
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) को जब बोधगया (बिहार) में ज्ञान प्राप्ति हुआ। तब वहाँ 2 बनजारे आए- तपुस तथा मल्लिक नामक बुद्ध ने इन सौदागरों (बनजारा) को सर्वप्रथम अपना शिष्य बनाया और उपदेश दिया था।
क्या था गौतम बुद्ध के गृह त्याग का कारण?
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) अपनी आत्मा से जुड़ना चाहते थे। वे दिव्य ज्ञान की खोज में थे। इसलिए उन्हें घर, परिवार, संपत्ति या किसी अन्य वस्तु से कोई जुड़ाव नहीं था। क्योंकि इन चीजों में उन्हें आध्यात्मिक आनंद नहीं मिलता था। गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) अपने मन में चल रहे कई प्रश्नों का उत्तर ढूंढने के लिए बोधि वृक्ष के नीचे बैठकर तपस्या करने लगे और 6 साल बाद उन्हें पूर्ण और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इस तरह से वे राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (Siddharth Gautam) से गौतम बुद्ध बन गए।
गौतम बुद्ध की मृत्यु
गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) की मृत्यु 483 ई. पूर्व में 80 वर्ष की अवस्था में कुशीनगर (कुशीनारा) में हुआ। जिसे बौद्ध ग्रंथ में महापरिनिर्वाण कहा गया हैं। गौतम बुद्ध तत्कालीन समय में कुशीनगर मल्लो के नियंत्रण में था मृत्यु के बाद बुध के शरीर के अवशेष को 8 भागों में बांटकर उस पर 8 स्टापो का निर्माण कराया गया। महापरीनिवार्ण के मुताबिक गौतम बुद्ध (Gautam Buddha) के शरीर धातु के दावेदार के नाम थे- पावा तथा कुशीनारा के मल्ल, कपिलवस्तु के शाक्य, वैशाली के लिच्छवी, अलकप्प के बुली, रामगाम के कोलिय, पिप्पलिवन के मोरिय, वेट द्वीप के ब्राह्मण, मगधराज के अजातशत्रु
गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द
गौतम बुद्ध के अंतिम शब्द (Gautam Buddha) हे भिक्षुओं, इस समय आज तुमसे इतना ही कहता हूं कि जितने भी संस्कार हैं, सब नाश होने वाले हैं, प्रमाद रहित होकर अपना कल्याण करो। यह 483 ई. पू. की घटना है। वे 80 वर्ष के थे।