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Delhi: 200 साल पुरानी हवेली में खाने-पीने के साथ रात गुज़ारने का मौक़ा

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Delhi की 200 साल पुरानी हवेली में खाने पीने के साथ रुकने का मौका

Delhi News: दिल्ली और आस पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए अच्छी खबर है। आपको बता दें कि पुरानी दिल्ली को हवेलियों का शहर कहा जाता है। पुरानी दिल्ली (Old Delhi) के चांदनी चौक की हर गली में कोई न कोई हवेली आपको देखने को मिल जाएगी। साथ ही हवेली की अलग-अलग खासियत होगी और उसकी कहानी भी अलग है। इन हवेलियों को पास से देखने का आनंद ही अलग है। अगर आप भी दिल्ली (Delhi) की इन हवेलियों में खाने पीने के साथ रात गुजारना चाहते हैं तो यह खबर आपको खुश कर देने वाली है। आपको बता दें कि दिल्ली (Delhi) की एक ऐसी हवेली है, जहां पर रुका जा सकता है, ब्रेकफास्‍ट, लंच और डिनर (Dinner) भी कर सकते हैं। आइए जानें हवेली का नाम और कैसे रुका जा सकता है…
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पुरानी दिल्ली (Old Delhi) की चांदनी चौक (Chandni Chowk), गली गुलियान की धरमपुरा हवेली की हम बात कर रहे हैं। यह हवेली पूरी तरह से जर्जर हो चुकी थी, लेकिन इसे पुराने स्‍वरूप में लाने का जिम्‍मा पूर्व केन्‍द्रीय मंत्री और बीजेपी नेता विजय गोयल और उनके बेटे ने उठाया। वो ही इसके मालिक भी हैं। इसका पुराना स्‍वरूप बहाल करने के बाद होटल में तब्‍दील कर दिया।

200 साल पुरानी हवेली में आनंद लीजिए

धरमपुरा हवेली को आईटीसी होटल्स द्वारा संचालिच किया जा रहा है। 200 साल पुरानी इस हवेली में 14 कमरे हैं और दो रेस्‍त्रां हैं। हवेली के दरवाजे, दीवारें, नक्काशी, झूमर, फर्श, कालीन, खंभे से लेकर हर कोने में पुरानी दिल्ली का इतिहास देखने को मिलता है। अगर आप इस हवेली में रुककर शाही अनुभव प्राप्त करना चाहते हैं तो इसे बुक कर सकते हैं। इसके अलावा अगर आप यहां रुकना नहीं चाहते हैं, केवल हवेली देखकर लंच-डिनर करना चाहते हैं तो यह सुविधा भी मौजूद है।

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6 साल में पूरा हुआ काम

जर्जर हो चुकी हवेली को पुराने स्‍वरूप में लाने में पूरे 6 साल का समय लग गया। इसमें 50 मजदूरों ने काम किया। हवेली की छतों को लकड़ी से डिजाइन किया गया है। पत्थर और स्टील में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां उकेरी गई हैं। पुराने जमाने की बालकनी और झरोखे की शान हैं। इमारत की वास्तुकला मुगल, हिंदू और यूरोपीय शैलियों के फ्यूजन से मिलकर बनी है।

यूनेस्को ने किया सम्मानित

पूरी तरह से जर्जर हो चुकी इस हवेली को फिर से पुराने स्‍वरूप में वापस लाने के लिए सांस्कृतिक विरासत संरक्षण के लिए यूनेस्को ने एशिया-प्रशांत पुरस्कार से सम्मानित भी किया है। हवेली के निर्माण कार्य के दौरान हवेलियों के विशेषज्ञों की सलाह और इससे संबंधित शोध पर भी पूरा ध्यान दिया गया है।

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लाला किले के संरक्षण में लगे मजदूरों से ली गयी सहायता

आपको बता दें कि इससे पहले दिल्‍ली नगर निगम ने इमारत को खतरनाक घोषित कर दिया था। इसके मूल स्वरूप को बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई थी। इसके लिए उन कारीगरों की सहायता ली गई जो लाल किला के संरक्षण में जुटे थे। इसके साथ ही पुरानी दिल्ली के उन विशेष कारीगरों की सेवाएं ली गईं, जो यहां की तंग गलियों में इमारतों का निर्माण करते हैं। रिपेयर में पलस्तर के लिए चूने व विशेष मिश्रण का इस्तेमाल किया गया। जिससे पुराना स्‍वरूव बरकरार रहे।