Bhopal News: वरिष्ठ रंगकर्मी,लेखक एवं पत्रकार आलोक शुक्ला के शोध ग्रंथ ‘बघेलखण्ड के लोकनाट्य ‘छाहुर’ की शोध यात्रा’ का लोकार्पण मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी और संस्कृति मंत्रालय द्वारा गौरांजनी हॉल रविन्द्र भवन भोपाल में आयोजित भारतीय मातृ भाषा अनुष्ठान में वरिष्ठ साहित्यकार सम्मिलन के की सुबह के पहले सत्र ‘लोक साहित्य और बोली’ में साहित्य अकादमी के निदेशक और साहित्यकार विकास दवे, साहित्यकार आलोक रंजन , आलोक सोनी, निरुपमा संजय त्रिवेदी, अशोक सिंह जी और सुश्री भोली बेन ने किया। इस मौके पर अकादमी के निदेशक विकास दवे ने पुष्प गुच्छ देकर लेखक और सभी उपस्थिति साहित्यकारों का स्वागत किया।
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इस अवसर कर वरिष्ठ रंगकर्मी और पुस्तक के लेखक आलोक शुक्ला ने सत्र के विषय और अपनी किताब के बारे में अपनी बात कहते हुए लेखकों को कहा कि अपने क्षेत्र की लोक कला को लिपिबद्ध करने की ज़रूरत है क्योंकि लोक कला संस्कृति श्रुति परम्परा से आगे बढ़ती है और फिर समय के साथ आधुनिकता में खो जाती है, इसे बचाने के लिए अपने क्षेत्र की लोक कला संस्कृति और बोली पर काम करना चाहिए। इस दौरान उन्होंने अपनी गंभीर बीमारी की चर्चा करते हुए बताया कि लेखन और रंगमंच ने ही उन्हें बीमारी से लड़ने की ताकत दी और उनका ये शोध ग्रंथ अपने विंध्य क्षेत्र बघेलखंड की मिट्टी का कर्ज चुकाने का एक छोटा सा प्रयास है । ऐसा प्रयास सभी क्षेत्र के साहित्यकार कर सकते हैं।
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इसी के साथ उन्होंने साहित्य अकादमी के मंच पर अपने स्वागत और किताब के लोकार्पण के लिए सहज, सरल व्यक्तित्व के मालिक सुधी और गुणी निदेशक डॉ विकास दवे का आभार व्यक्त किया। गौरतलब है कि रंगकर्मी आलोक शुक्ला की ये छठी किताब है। इसके पहले उनके तीन नाट्य संग्रह ‘ख़्वाबों के सात रंग, ‘पंचरंग’ और ‘अजीब दास्तां, एक रंग संस्मरण ‘एक रंगकर्मी की यात्रा’ और एक काव्य संग्रह ‘अफसोस की ख़बर’ प्रकाशित हो चुका है। ये सभी पुस्तकें अमेजन और फिलिपकार्ट पर उपलब्ध हैं।

