टिकिट थे,लेकिन लेने वाला कोई नहीं
मध्यप्रदेश के नगर निकाय चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस को अंतिम क्षण तक प्रत्याशियों में फेरबदल करना पड़ा। यह बताता है कि इन दलों की प्रत्याशियों को लेकर पहले से कोई प्लानिंग नहीं थी। भाजपा -कांग्रेस के बाद इस बार लोग आम आदमी पार्टी से भी टिकिट मांगने पहुंचे। आप के साथ भी बड़ी चोट उस वक्त हो गई जब भोपाल से आप की मेयर प्रत्याशी ने पार्टी को बिना बताये ही अपना नामांकन वापस ले लिए और आप के नेता भौंचके से देखते रह गए। सपा और बसपा ऐसी पार्टियां रहीं जिन के पास देने के लिए टिकिट तो थे लेकिन उन्हें लेने को कोई तैयार नहीं था।
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बाद में सरकार भाजपा की…
चुनावी चकल्लस में कमलनाथ की ”15 महीने बाद फिर कांग्रेस सरकार” पर चर्चा चल रही थी। राजनैतिक बुद्धिजीवियों में बहस थी कि कमलनाथ जैसा कह रहे हैं वो सम्भव हो सकता है। वातावरण कुछ ऐसा ही हैं। तमाम लोगों ने 2023 में कांग्रेस सरकार की वापसी और कुछ ने पुनः शिवराज की ताजपोशी की बातें दमदार तरीके से कीं। लेकिन ठहाके तब लगे जब एक साहब ने कहा जीते भले ही कोई भी पार्टी ,किसी के पास कितने भी विधायक हों ,कैसा भी गठबंधन बन जाए लेकिन बाद में सरकार भाजपा की ही बनेगी। इन साहब ने कहा मेरी बात गलत लगे तो ताजा राजनैतिक इतिहास उठा के पढ़ लें और महाराष्ट्र के हाल देख लें।
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शिवराज के प्लान पर पानी फेरा
सीएम शिवराज सिंह के मध्यप्रदेश में उद्योग लगाने के प्लान को उनके बाबू टाइप के बड़े अधिकारीयों ने पलीता लगा दिया। पीएण्डजी एमपी में अपना एक बड़ा प्लांट लगाने पर विचार कर रही थी। पांच सौ करोड़ से ज्यादा का प्रोजेक्ट था। मुख्यमंत्री भी चाहते थे कि एमपी में निवेश आये लेकिन बड़े बाबुओं ने फ़ाइल को ऐसा उलझाया कि कम्पनी के लोग तीन महीने में ही चकरघिन्नी हो गए। मंत्रालय के चक्कर काट काट के थक चुके कम्पनी के अफसरों ने भोपाल से अपना डेरा समेटने में ही भलाई समझी। कम्पनी अपने नए प्रोजेक्ट को मध्यप्रदेश से उठाकर सीधे गुजरात ले गई है। इस कम्पनी के साथ जो व्यवहार मध्यप्रदेश में हुआ इसकी जानकारी पीएमओ तक भी पहुँच गई है।
लेखक दख़ल न्यूज़ के मुख्य संपादक हैं।