उद्भव त्रिपाठी, ख़बरीमीडिया
Nipah Virus: देश में अभी कोरोना का संकट गए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं कि एक दूसरे वायरस ने अपना आतंक मचाना शुरू कर दिया है। यह वायरस भी कोरोना से ज्यादा खतरनाक है और लोगों की तेजी से जान ले रहा है। अब भारत में भी इस वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस वायरस का नाम है निपाह। भारत में सबसे तेजी से केरल राज्य मे निपाह वायरस के मामले बढ़ रहे हैं। इस बीच निपाह वायरस के मौजूदा स्ट्रेन को लेकर शीर्ष महामारी एक्सपर्ट डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने गंभीर चेतावनी दी है।
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केरल में निपाह वायरस का असर धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। राज्य में शनिवार को एक और निपाह पॉजिटिव मामला सामने आया है। जिसके बाद केरल में अब निपाह से संक्रमित होने वालों की संख्या बढ़कर 6 हो गई है। राज्य में निपाह को लेकर प्रोटोकॉल लागू कर दिया है। प्रदेश में निपाह वायरस संक्रमण से दो लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण को देखते हुए प्रदेश में स्कूलों को भी बंद कर दिया है। केरल की स्वास्थ्य मंत्री वीना जॉर्ज ने कह दी हैं कि प्रदेश में निपाह वायरस का बांग्लादेश वाला स्ट्रेन मिला है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये बांग्लादेश वाला स्ट्रेन कितना खतरनाक है। एक इंटरव्यू में ICMR के महामारी और कम्यूनिकेबल बीमारियों के प्रमुख रहे डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने निपाह वायरस के बांग्लादेश वाले स्ट्रेन के बारे में डिटेल से बताया।
बांग्लादेश वाला स्ट्रेन अधिक खतरनाक
देश के टॉप महामारी एक्सपर्ट डॉ. रमन गंगाखेड़कर का ने बताया है कि निपाह वायरस का बांग्लादेश स्ट्रेन सांस लेने में दिक्कत पैदा करता है। खास बात है कि यह 10 में से नौ संक्रमित व्यक्तियों की जान ले लेता है। उन्होंने कहा कि ऐसे में सावधानी बरतते हुए इसके प्रसार और संक्रमण की रोकथाम के लिए वायरस के स्रोत का पता लगाना अत्यंत महत्वपूर्ण है। गंगाखेडकर ने केरल में निपाह वायरस के पिछले तीन प्रकोपों से निपटने में देश के प्रयास का नेतृत्व किया था। उन्होंने कहा कि सर्वोच्च प्राथमिकताएं इंडेक्स रोगी को ढूंढना, निपाह वायरस की उत्पत्ति का पता लगाना, आसपास के सभी जानवरों का परीक्षण करना, समुदाय को संगठित करना और चिकित्सा सहायता तैयार रखना है।
गंगाखेडकर ने कहा कि सर्कुलेटिंग स्ट्रेन को सांस लेने में दिक्कत से जुड़े सिंड्रोम का कारण माना जाता है। यह मरीजों को शुरुआती लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ महसूस कराता है। इसके बाद उन्हें वेंटिलेटर की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि मलेशियाई स्ट्रेन न्यूरोलॉजिकल लक्षणों को प्रकट करने के लिए जाना जाता है। जबकि बांग्लादेश स्ट्रेन उच्च मृत्यु दर या मौतों के लिए जाना जाता है। यह लगभग 10 संक्रमित लोगों में से नौ लोगों की जान ले लेता है। उन्होंने कहा कि पहले प्रकोप के दौरान 23 में से 89% रोगियों की मृत्यु हो गई थी।
ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी
भारत निपाह वायरस संक्रमण के इलाज के लिए ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की 20 और खुराक खरीदेगा। ICMR के महानिदेशक डॉ. राजीव बहल की तरफ से यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमें 2018 में ऑस्ट्रेलिया से मोनोक्लोनल एंटीबॉडी की कुछ खुराकें मिली थीं। वर्तमान में खुराकें केवल 10 मरीजों के लिए उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा कि भारत के बाहर निपाह वायरस से संक्रमित 14 मरीजों को मोनोक्लोनल एंटीबॉडी दी गई और वे सभी बच गए हैं।
वैक्सीन बनाने की योजना पर काम
निपाह के लिए वैक्सीन बनाने पर काम शुरू करने की आईसीएमआर की योजना पर बहल ने कहा कि इस प्रक्रिया के तहत उन साझेदारों की तलाश की जा रही है जो इसे बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस समय हमारी सबसे बड़ी कामयाबी यह है कि हमने कोविड के दौरान विविध तरीकों से वैक्सीन विकसित किए हैं। डॉ. बहल ने कहा कि हम निपाह संक्रमण जैसी बीमारी के खिलाफ नए टीके विकसित करने के लिए इन विविध तरीकों का इस्तेमाल कर सकते हैं। केरल में मामले क्यों सामने आ रहे हैं, इस पर बहल ने कहा कि हम नहीं जानते। उन्होंने कहा, 2018 में, हमने पाया कि केरल में यह प्रकोप चमगादड़ों से संबंधित था। हमें पता नहीं है कि संक्रमण चमगादड़ों से मनुष्यों में कैसे पहुंचा। कड़ी जुड़ नहीं सकी। इस बार फिर हम पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं। बरसात के मौसम में ऐसा हमेशा होता है। निपाह संक्रमण में उच्च मृत्यु दर को देखते हुए बहल ने कहा कि एहतियात बरतना सबसे अच्छा विकल्प है। उन्होंने लोगों को सामाजिक दूरी बरतने, मास्क पहनने और ऐसे कच्चे खाद्य पदार्थ न खाने की सलाह दी है जो चमगादड़ के संपर्क में आए हों।
क्या है निपाह?
निपाह चमगादड़ या सूअर के जरिये फैलने वाला एक वायरस है। सबसे पहले इसका मामला 1998 में मलेशिया में आया था। वहां यह सुअर से इंसानों में फैला था। यह जानवरों से इंसानों में फैलता है। साल 2004 में बांग्लादेश में इसके संक्रमण के मामले सामने आए। इस संक्रमण की वजह से बुखार होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, इस वायरस का कोई टीका नहीं है। सबसे परेशानी की बात है कि इस वायरस के संक्रमण के बाद मृत्यु दर 40 से 75 प्रतिशत तक है।
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