PM Modi Bhutan: भारत के प्रधानमंभी नरेन्द्र मोदी अपने पड़ोसी मुल्क भूटान (Bhutan) दो दिवसीय दौरे पर पहुंचे हैं। पीएम नरेन्द्र मोदी ‘पड़ोस प्रथम’ की नीति के तहत भूटान (Bhutan) के साथ भारत के संबंधों को और मजबूत बनाने के लिए आज से दो दिवसीय राजकीय यात्रा पर हैं। आपको बता दें कि भूटान के पारो हवाई अड्डे पर पीएम मोदी के पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया। हवाई अड्डे पर भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे ने पीएम मोदी (PM Modi) की अगवानी की। पारो अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से थिम्पू तक के 45 किलोमीटर लंबे मार्ग को भारत और भूटान के झंडों से सजाया गया था और मार्ग के दोनों तरफ खड़े भूटानी लोगों ने प्रधानमंत्री मोदी का गर्मजोशी से स्वागत किया।
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विदेश मंत्रालय (Ministry of External Affairs) ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की यह यात्रा भारत और भूटान के बीच नियमित रूप से होने वाली उच्चस्तरीय आदान-प्रदान की परंपरा और सरकार की ‘पड़ोस प्रथम की नीति’ पर जोर देने की कवायद के अनुरूप है। भूटान के प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया पर लिखा कि ‘भूटान में आपका स्वागत है मेरे बड़े भाई।’ इससे पहले पीएम मोदी ने भी अपनी भूटान यात्रा के बारे में एक्स पर एक पोस्ट में लिखा कि भूटान के रास्ते में हूं, जहां मैं भारत-भूटान साझेदारी को और मजबूत करने के उद्देश्य से विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लूंगा। मैं भूटान नरेश, भूटान के चौथे नरेश और प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे से मुलाकात करने के लिए उत्साहित हूं।
मौसम के कारण कैंसिल हुई थी यात्रा
आपको बता दें कि पीएम नरेन्द्र मोदी की यह यात्रा 21 से 22 मार्च को होनी थी लेकिन भूटान में मौसम खराब होने के कारण इसे टाल दिया गया था। इस यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री मोदी भूटान के नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक और भूटान के चौथे नरेश जिग्मे सिंग्ये वांगचुक से मुलाकात करेंगे। वह भूटान के अपने समकक्ष शेरिंग टोबगे के साथ भी बातचीत भी करेंगे। विदेश मंत्रालय ने इस सप्ताह की शुरुआत में एक बयान जारी करते हुए कहा था कि यह यात्रा दोनों पक्षों को पारस्परिक हित के द्विपक्षीय एवं क्षेत्रीय मामलों पर विचारों का आदान-प्रदान करने और दोनों देशों के लोगों के लाभ के लिए आपसी अनुकरणीय साझेदारी को विस्तारित एवं मजबूत करने के तौर-तरीकों पर विचार-विमर्श करने का अवसर प्रदान करेगी।
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अस्पताल का करेंगे उद्घाटन
बयान में बताया गया था कि भारत और भूटान के बीच आपसी विश्वास, समझ एवं सद्भावना पर आधारित एक अनूठी व स्थायी साझेदारी है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि हमारी साझी आध्यात्मिक विरासत और दोनों देशों के लोगों के बीच मधुर संबंध हमारे असाधारण संबंधों में घनिष्ठता एवं जीवंतता का समावेश करते हैं। पीएम का पारंपरिक बौद्ध मठ तशिछो डोंग में भव्य स्वागत होगा। वह थिम्पू में भारत सरकार के सहयोग से निर्मित आधुनिक सुविधाओं वाले अस्पताल ज्ञाल्तसुएन जेत्सुन पेमा मदर एंड चाइल्ड हॉस्पिटल का उद्घाटन भी करेंगे। भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग टोबगे पिछले सप्ताह भारत की पांच दिवसीय यात्रा पर गए थे। यह जनवरी में शीर्ष पद संभालने के बाद उनकी पहली भारत यात्रा थी।
पीएम नरेंद्र मोदी इस दौरान भूटान के बच्चों से भी मिले, जिन्होंने हाथों में भारत और भूटान के झंडे ले रखे थे। वीडियो में देखा जा सकता है कि पीएम मोदी के आगे-आगे बच्चे चल रहे हैं और उन्होंने उनके कन्धों पर हाथ भी रखा हुआ है। इस दौरान दोनों तरफ भूटान के लोग पारंपरिक अंदाज़ में उनका स्वागत कर रहे हैं और गीत गए जा रहे हैं।
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बात 16वीं सदी की है। कूचबिहार के महाराजा नर नारायण और रंगपुर के फौजदार शतरंज का खेल खेलते थे। शतरंज की बाजी में दोनों अपने-अपने गांवों को दांव लगाते थे। यानी हर बाजी में कोई न कोई एक गांव जरूर जीतता और हारता था। इस तरह कूचबिहार के राजा ने रंगपुर के 111 गांव और रंगपुर के राजा ने कूचबिहार के 51 गांव जीते। बाद में इन गांवों पर शासन को लेकर दोनों रियासतों के बीच जंग भी हुई।
साल 1713 में इन गांवों को लेकर दोनों रियासतों में समझौता हो गया। समझौते के तहत रंगपुर के 111 गांवों पर कूचबिहार का राज और कूचबिहार के 51 गांवों पर रंगपुर का शासन हो गया। सालों तक यह समझौता चलता रहा। जब भारत का बंटवारा हुआ 1947 में तो रंगपुर पाकिस्तान का हिस्सा बना और कूचबिहार भारत का, पर इन गांवों को लेकर कोई फैसला नहीं लिया गया।
कूचबिहार के 111 गांव, जो रंगपुर में थे, वो पाकिस्तान में फंस गए और रंगपुर के 51 गांव भारत में रह गए। यानी भारत में पाकिस्तान के गांव आ गए और पाकिस्तान में भारत के गांव। इन गांवों में रहने वालों को नागरिकता न भारत ने ही दी न पाकिस्तान ने। 162 गांवों के करीब 50 हजार लोग बिना देश के हो गए।
साल 1958 में पहली बार भारत और पाकिस्तान के बीच इन गांवों लेकर पंडित जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तानी PM फिरोज खान नून के बीच समझौते की शुरुआत की, लेकिन बात नहीं बनी। 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद पूर्व PM इंदिरा गांधी से लेकर मनमोहन सिंह तक, दोनों देशों के बीच समझौते को लेकर बहुत प्रयास किए, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई।
आखिरकार 2015 में PM नरेंद्र मोदी ने उसी समझौते पर दस्तखत कर दिए। BJP का कहना था कि हम बांग्लादेश को ज्यादा जमीन नहीं देंगे। समझौते के बाद बांग्लादेश को करीब 10 हजार एकड़ जमीन ज्यादा मिली। भारत ने 51 गांवों के बदले बांग्लादेश को 111 गांव दिए। 31 जुलाई 2015 को पहली बार पश्चिम बंगाल के कूचबिहार जिले के मसलदंगा गांव के लोगों ने तिरंगा फहराकर लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट का जश्न मनाया था।