भारतीय टीम को अपने बेहतरीन कोचिंग से 2011 का वनडे चैंपियन (ODI Champion) बनाने वाले कोच गैरी कर्स्टन आजकल इंटरनेशनल क्रिकेट से दूर बच्चों को क्रिकेट का ककहरा सीखा रहे है।
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गैरी आजकल दुनियां की सबसे बड़ी झुग्गियों में शामिल खयेलित्शा के उन बच्चों को क्रिकेट (Cricket) सिखा रहे हैं। जो गैंगवार और गरीबी से जूझ रहे हैं और ड्रग्स की लत से परेशान हैं। अश्वेत बच्चों को बराबरी का हक दिलाने के लिये यह अनूठी मुहिम ‘गुरू गैरी’ की ही है। जिन्होंने वंचित तबके के कई बच्चों की जिंदगी को बदलकर रख दिया है।
भारत को 2011 में विश्वकप (Worldcup) दिलाने के 3 साल बाद 2014 में कर्स्टन ने खयेलित्शा में बच्चों को ड्रग्स और हिंसा की व्यापक चुनौतियों का विकल्प प्रदान करने के लिए ये काम शुरू किया। गैरी का कैच ट्रस्ट फाउंडेशन ( पूर्व नाम गैरी कर्स्टन फाउंडेशन) यहां पांच स्कूलों में पांच से 19 वर्ष की उम्र के एक हजार से ऊपर बच्चों को क्रिकेट का प्रशिक्षण दे चुका है।
आपको बता दें कि 2019 से पहले फाउंडेशन के प्रयासों पर किसी का ध्यान नहीं गया था। लेकिन बाद में जब
ट्रस्ट ने 13 बच्चों और दो कोचों को 2019 में इंग्लैंड (England) में विश्व कप देखने का मौका भी दिया। जो उनके लिये सपने जैसा था तब जाकर ये फाउंडेशन सबकी नजर में आया।
अपने फाउंडेशन के बारे में गैरी कर्स्टन (Garry Kirsten) ने कहा, ‘मैं जब भारत से यहां आया तो केपटाउन में सबसे गरीब इस इलाके का दौरा करने पर देखा कि यहां क्रिकेट क्या कोई खेल नहीं हो रहा है। मुझे बहुत बुरा लगा। मैने तब यह केंद्र बनाने की सोची और शुरुआत दो स्कूलों से करने के बाद अब पांच स्कूलों में केंद्र चला रहे हैं।’
कर्स्टन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को निखारने के लिए चार चीजें चाहिए। अच्छे उपकरण, अच्छी सुविधाएं, अच्छे कोच और खेलने के लिए मैच। हम उन्हें यही दे रहे हैं और कल को अगर कोई अच्छा खिलाड़ी यहां से निकलता है। तो दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट के लिए यह हमारी सेवा होगी।’
आपको बता दें कि दक्षिण अफ्रीका (South Africa) में रंगभेद के दौरान अश्वेतों को शहर से बाहर करने की कवायद में 1983 में खयेलित्शा बसाया गया। इसमें 25 लाख से अधिक लोग रहते हैं। और 99.5 प्रतिशत अश्वेत हैं जिनका जीवन संघर्ष से भरा है। ऐसे में नशे और अपराध का बुरा साया बचपन में ही बच्चों पर पड़ जाता है।