हाल के वर्षों में भारत ने मातृ स्वास्थ्य सेवाओं (Maternal Health Services) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन गहराई से देखने पर यह स्पष्ट होता है कि फुटपाथों पर रहने वाली कई बेघर माताएं अब भी इन सेवाओं से वंचित हैं। इन महिलाओं तक मातृ स्वास्थ्य की मूलभूत सेवाएं पहुंचाने में अब भी कई गंभीर खामियां हैं।
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इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (International Institute for Population Sciences), मुंबई के सीनियर रिसर्च फेलो मार्गुबुर रहमान के नवीनतम शोध में कोलकाता की फुटपाथ पर रहने वाली माताओं को सामना करने वाली चुनौतियों को उजागर किया गया है। यह शोध हाल ही में कैम्ब्रिज प्रेस में प्रकाशित हुआ है। शोध में सामने आई चिंताजनक तस्वीर में यह पाया गया कि इन बेघर माताओं में मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, एनीमिया और मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों की दर बहुत अधिक है।
इन गंभीर स्वास्थ्य (Health) समस्याओं के बावजूद, केवल 26 प्रतिशत बेघर माताओं को अपनी आखिरी गर्भावस्था के दौरान पूरी मातृ स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त हुईं, जिसमें चार या उससे अधिक प्रसव पूर्व जांच, स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव और प्रसवोत्तर देखभाल शामिल थीं। ग्लोबल सोशल वेलफेयर (Springer Nature) जर्नल में प्रकाशित उनके एक अन्य अध्ययन में यह भी पाया गया कि भिखारी और कचरा बीनने जैसे बेघर समूहों में मातृ स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच और भी सीमित है।
हालांकि समुदाय स्वास्थ्य कार्यकर्ता (Asha Karmi) और गैर-सरकारी संगठन (NGO) इन बेघर माताओं तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने में कुछ हद तक मदद कर रहे हैं, फिर भी केवल 8 प्रतिशत बेघर माताओं को ही आशा कर्मियों से नियमित सहायता मिल पाई और 25 प्रतिशत माताओं ने एनजीओ से सहयोग प्राप्त किया।
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बेघर माताओं (Homeless Mothers) के लिए यह समस्या और भी गंभीर है क्योंकि वे दैनिक जीवन के संघर्ष, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से भेदभाव और जीवन की अन्य कठिनाइयों का सामना करती हैं, जिससे कई माताएं जिनकी मदद की सख्त जरूरत है, स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित रह जाती हैं और इन सेवाओं का लाभ लेने से हतोत्साहित होती हैं।