अभिमान फिल्म में एक दृश्य है, जिसमें विवाहोपरांत सुबीर कुमार रिसेप्शन की पार्टी में कहता है कि अब हम यानी पति-पत्नी साथ-साथ गाएंगे। उसकी बात सुनकर डेविड कहते हैं कि सुबीर कुमार ऐसी गलती ना ही करें तो अच्छा है। फिर एक विचित्र सा करुण भाव उनकी आंखों में उभरता है। वह उमा देवी के लिए चुप रहकर यह इंगित करते हैं कि वह बहुत बेहतर गाती हैं। हृषि दा ने अपनी अमर फिल्म के जरिए बहुत सूक्ष्म तरीके से यह स्थापित किया कि लता अनन्य थीं। उस फिल्म में किशोर, मुकेश के स्थानापन्न मनहर और रफी तीनों ने सुबीर कुमार के लिए गाया है। संदेश साफ था कि कोई तुलना नहीं है। सिने जगत में पीढ़ियां आ आकर खप गई, किसी ने उस दिव्य स्वर को चुनौती नहीं दी। लगभग सारे दिग्गज नतमस्तक रहे। बड़े-बड़े शास्त्रीय गायकों ने सम्मान से उनका नाम लिया।
ध्यातव्य है 1961 में रायल्टी विवाद के ठीक साल भर बाद लता को जहर दिए जाने का हैरतअंगेज सच सामने आया। उनके डाक्टर ने गहन जांच के बाद कहा कि उन्हें धीमा जहर दिया जा रहा था। वह महीनों बीमार रहीं। घुलती रहीं कि अब गायन नहीं कर पाउंगी! लेकिन वे ठीक होकर आईं। पुनः अपना ध्वज गाड़ दिया। जब जहर देने का सच सामने आया तो उषा मंगेशकर ने लता के रसोइये से कहा कि आज से दीदी के लिए खाना मैं बनाऊंगी।उस दिन के बाद रसोइया चुपचाप घर से गुम हो गया। जिसने इस संदेह को लगभग प्रमाणित किया कि वह किसी के कहने पर वैसा कर रहा था और भेद खुल जाने के भय से भाग खड़ा हुआ।
इन साठ सत्तर वर्षों में एक गुट ने लगातार लता जैसी दिव्य गायिका का मूर्तिभंजन किया और अन्य साधारण बल्कि खराब लोगों को महान बनाया। यह भारतीय समाज में घोला गया विषैला पाठ है। इसी पाठ ने कभी महाराणा को छोटा बनाया। कभी सावरकर को अस्पृश्य घोषित किया। कभी संपूर्ण सनातनी सभ्यता को प्रतिगामी, पतनोन्मुख कहा। कभी लता को कुटिल महिला बताने की कोशिश की। लेकिन इतिहास निर्मम होता है। वह धरती को फाड़कर अपने रौद्र रूप में प्रकट होता है,ठीक नरसिंह की तरह। आज लता के लिए संपूर्ण विश्व से श्रद्धांजलियां उमड़ रही हैं। वह इस आधुनिक संसार में सबसे अधिक गायी जाने वाली गायिका के रूप में प्रतिष्ठित हैं। वह पीढ़ियों और दौरों से बहुत आगे हैं। ऐसा प्रेम युगों-युगों में किसी कलावंत को मिलता है। मैंने अपने जीवन में किसी अन्य कलाकार के लिए ऐसा प्रेम न देखा।
लता ने अपने जीवन की वेदनाओं को अपना स्वर बना लिया। उनके गाए अनन्य रोमांटिक गानों में भी एक विचित्र सी आह है। ईश्वर ने उन्हें इसीलिए धरती पर भेजा था कि वह इस संसार को सबसे मनोहर गान दे सकें। उन गानों को गाते हुए भी वह कहती थीं कि दुबारा लता मंगेशकर बनकर जन्म नहीं लेना चाहतीं। इस कष्ट को कितने लोग समझ पाए हैं। कीचड़ उछालने वालों को मैं मनुष्य की श्रेणी में नहीं रखता।
वरिष्ठ पत्रकार देवांशु झा के फेसबुक वॉल से साभार
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