Jyoti Shinde, Editor
पिछले कुछ दिनों से एबीपी न्यूज़(Abp NEWS) में बड़ी उथल-पुथल मची है। एबीपी गंगा(ABP GANGA) और एबीपी सांझा(ABP SANJHA) को अचानक से डिजिटल में बदलने का फैसला लिया गया। आनन-फानन में कई पत्रकारों की नौकरी चली गई। सूत्रों से ये भी ख़बर हाथ लगी है कि जिन लोगों की नौकरी गई उनमें ज्यादातर पत्रकार जो लखपति थे लेकिन आउटपुट ढेले भर का नहीं था। और सालों से एबीपी न्यूज़ नेटवर्क में रहकर मौज ले रहे थे। अपनी सैलरी बढ़वा रहे थे। हां उनमें से कुछ पत्रकार ऐसे भी थे जो निहायती मेहनती और काम को लेकर ईमानदार थे लेकिन किसी की गलत रिपोर्ट की वजह उनकी नौकरी चली गई।
लेकिन जैसा कि सिक्के के दो पहलू होते हैं। यहां भी वही है। क्योंकि सवाल संपादक पर उठ रहे हैं। और चैनल के संपादक हैं संत प्रसाद राय। संत प्रसाद के बारे में एक कहावत बहुत पुरानी है कि संत प्रसाद नौकरी लेने नहीं, नौकरी देने में भरोसा करते हैं। साथ चैनल में काम करने वाले पत्रकारों का अच्छा इंक्रीमेंट करवाते हैं। ताकि वो और ज्यादा मेहनत करें और चैनल को मुकाम तक ले जाएं।
अब पर्दे के पीछे का खेल समझिए। जिन संत प्रसाद राय को पूरी कवायद के लिए पीठ पीछे जिम्मेदार बताया जा रहा है। दरअसल ये वही संत प्रसाद राय हैं जिन्होंने एबीपी गंगा और एबीपी सांझा जैसे चैनल के पत्रकारों की एबीपी न्यूज़ नैशनल में एंट्री करवाई। इसमें कोई शक नहीं 50 से ज्यादा पत्रकारों की नौकरी गई। लेकिन 500 पत्रकारों की नौकरी बचाई भी गई। क्योंकि अगर उन्हें नैशनल में शिफ्ट नहीं किया जाता तो बेरोजगारों की पूरी फौज़ खड़ी हो जाती।
पत्रकारों को नौकरी से निकालने या ना निकालने का फैसला मालिकान के पास होता है। अगर संपादक के पास होता तो संत प्रसाद के चैनल ज्वाइन करते ही छंटनी का दौर शुरू हो जाता। जैसा अमूमन दूसरे चैनलों में होता है। लेकिन एबीपी में ऐसा बिल्कुल नहीं है। बड़ा सवाल ये भी कि जो पत्रकार 20-20 साल से सेवाएं दे रहे थे। लाखों की सैलरी वसूल रहे थे। उनके रहते चैनल टॉप5 में क्यों नहीं पहुंच पाया। साफ है कि मालिकों को लगने लगा उन्हें गुमराह किया जा रहा है। बाकी जनता खुद ही समझदार है।