Chandrayaan-3: भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO द्वारा भेजा गया चंद्रयान-3 इतिहास रचने के बेहद करीब है। इसका विक्रम लैंडर सफलतापूर्वक अलग हो गया है। यह चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है और उतरने के लिए सही जगह की तलाश कर रहा है। चंद्रयान-3 कल यानी 23 अगस्त को शाम 6:04 बजे ही चंद्रमा पर लैंड करेगा।
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ISRO ने मिशन की जानकारी की सूचना देते हुए बताया कि चंद्रयान-3 के सभी सिस्टम्स को समय-समय पर चेक किया जा रहा है। ये सभी सही तरह से काम कर रहे हैं। इस जानकारी के साथ ही इसरो ने चांद की नई तस्वीरें शेयर की हैं, जो चंद्रयान-3 ने भेजी हैं। चंद्रयान-3 ने 70 किमी की दूरी से लैंडर पोजिशन डिटेक्शन कैमरा (LPDC) की मदद से चांद से ये तस्वीरें खींचीं हैं। चंद्रयान-3 फिलहाल चांद पर लैंडिंग के लिए सटीक जगह खोज रहा है। इसे 25KM की ऊंचाई से लैंड किया जाएगा।
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर के बीच संपर्क स्थापित
इसरो यानी इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन ने बताया कि उसने चंद्रयान-2 मिशन के ऑर्बिटर और चंद्रयान-3 के लैंडर के बीच संपर्क बनाने में कामयाब हो गया है। टू-वे कम्युनिकेशन के स्थापित होने के बाद ऑर्बिटर ने लैंडर से कहा- स्वागत है दोस्त!
लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट सबसे मुश्किल होंगे
चंद्रयान-3 के लैंडर की सॉफ्ट लैंडिंग कुल 15 से17 मिनट लगेंगे। इस समय को 15 मिनिट्स ऑफ टेरर यानी खौफ के 15 मिनिट्स कहा जा रहा है। अगर भारत का चंद्रयान-3 मिशन सफल होता है तो वो चंद्रमा के साउथ पोल पर उतरने वाला पहला देश बन जाएगा। इसरो के मुताबिक चंद्रमा पर उतरने से करीब दो घंटे पहले, लैंडर मॉड्यूल की स्थिति और चंद्रमा की स्थितियों के हिसाब से यह तय करेगा कि उस समय इसे उतारना सही होगा या नहीं। अगर कोई भी फैक्टर तय पैमाने पर नहीं रहा तो लैंडिंग 27 अगस्त को कराई जाएगी। चंद्रयान का दूसरा और फाइनल डीबूस्टिंग ऑपरेशन रविवार रात 1 बजकर 50 मिनट पर पूरा हुआ था। इसके बाद लैंडर की चंद्रमा से न्यूनतम दूरी 25 किमी और अधिकतम दूरी 134 किलोमीटर रह गई है। डीबूस्टिंग में स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीमा किया जाता है।
15 मिनिट्स ऑफ टेरर आखिर है क्या
चंद्रमा हमारी पृथ्वी 3,83,400 किलोमीटर की दूरी पर है। इसरो के मुताबिक चंद्रयान की लैंडिंग के आखिरी 15 मिनट काफी कुछ तय करेंगे। इन आखिरी 15 मिनिट्स ऑफ टेरर कहा जा रहा है।
दरअसल, स्पेस के अंतिम क्षणों को Last Minutes Of Terror कहा जाता है। इन लास्ट मिनिट्स में लैंडिंग रोवर ग्रह की सतह पर लैंड करता है। इन 15 मिनट में लैंडर खुद से ही काम करता है। इस दौरान इसरो से कोई भी कमांड नहीं दिया जा सकता है। ऐसे में यह समय काफी महत्वपूर्ण होने वाला है। इस दौरान लैंडर को सही समय, सही ऊंचाई और सही मात्रा में ईंधन का इस्तेमाल करते हुए लैंडिंग करनी होगी।
चंद्रयान-2 भी जा रहा था दक्षिणी ध्रुव पर
साल 2019 में लॉन्च किए गए भारत के चंद्रयान-2 को भी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरना था, लेकिन शेयर ले जा रहा लेंडर अंतिम क्षणों में चंद्रमा से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। बाद में पता चला कि कैश एक सॉफ्टवेयर त्रुटि के कारण हुआ था। इसरो प्रमुख श्रीपर सोमनाथ ने कहा है कि चंद्रयान-3 मिशन के सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर में बदलाव किए गए हैं, खासकर लेंडर स्टर्स के लिए। इसके अतिरिक्त इसरो ने बेहतर सॉफ्ट-लैंडिंग अनुक्रम विकसित किए है और सेंडर में पांच की बजाय चार प्रस्टर इंजन और बड़े सौर पैनल है, और इस बार सफलता सुनिश्चित करने के लिए अधिक ईंधन ले जाएगा।
लैंडिंग की जगह खुद चुनेगा विक्रम
इसरो के मुताबिक विक्रम सेंडर अपने लैंडिंग के लिए सही जगह का चुनाव वह करेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि विक्रम चांद पर अपने आप सफलतापूर्वक उत्तरने में सक्षम बनाया गया है। इसीलिए लैंडिंग पर नजर रखने के लिए इसरो ने कैमरे लगा रखा है।
विक्रम 96 मिली सेकेंड्स में दूर करेगा गलतियां
चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर का इंजन चंद्रयान-2 के इंजन से ज्यादा शक्तिशाली बनाया गया है चंद्रयान-2 में जो गलतियां हुई थी. होगा उसमें सबसे बड़ी वजहों में से एक था कैमरा, जो अन्तिम दौर में सक्रिय हुआ था। इस बार कैमरे में काफी सुधार किया गया है। चंद्रयान-3 के विक्रम लेंडर के सेंसर्स कम से कम गलतियां करेंगे अगर कोई गलतियां भी होंगी, उन्हें बहुत ही कम समय में सुधारेगा। गलतियों को सुधारने के लिए विक्रम के पास 96 मिली सेकेंड्स का समय होगा। इसी कारण इस बार विक्रम लैडर के अन्दर ट्रैकिंग, टेलिमेट्री के साथ कमांड एंटीना लगे हैं, जिससे गलती न होने की संभावना है।
सब कुछ फेल हो जाए तब भी विक्रम लैंड करेगा
इसरो चेयरमैन एस सोमनाथ ने 9 अगस्त को विक्रम की लैंडिंग को लेकर कहा था कि अगर सब कुछ फेल हो जाता है, अगर सभी सेंसर फेल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है, फिर भी विक्रम लैंडिंग करेगा, बशर्ते एल्गोरिदम ठीक से काम करें। हालांकि फेल होने की गुंजाइश न के बराबर है।
चांद पर अशोक स्तंभ की छाप छोड़ेगा रोवर प्रज्ञान
चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर रहे एम. अन्नादुरई ने बताया कि 23 अगस्त की शाम को चंद्रयान-3 के लैंडर को 25 किमी की ऊंचाई से चांद की सतह तक पहुंचने में 15 से 20 मिनट लगेंगे। यही समय सबसे क्रिटिकल होने वाला है। इसके बाद विक्रम लैंडर से रैंप के जरिए छह पहियों वाला प्रज्ञान रोवर बाहर आएगा और इसरो से कमांड मिलते ही चांद की सतह पर चलेगा। इस दौरान इसके पहिए चांद की मिट्टी पर भारत के राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो की छाप छोड़ेंगे।
नासा और यूरोपी एजेंसी भी कर रहे चंद्रयान-3 की मदद
भारत के मून मिशन को अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA और यूरोपीय अंतिरक्ष एजेंसी (ESA) से भी मदद मिल रही है। इसरो ने 14 जुलाई को चंद्रयान को लॉन्च किया था। इसके बाद से नासा इसरो को इसकी निगरानी करने में मदद कर रहा है। नासा का डीप स्पेस नेटवर्क इसरो को चंद्रयान की निगरानी के लिए टेलीमेट्री और ट्रैकिंग कवरेज दे रहा है। नासा के साथ ही यूरोपीय अंतिरक्ष एजेंसी भी भारत की मदद कर रही है। ESA एस्ट्रैक नेटवर्क में दो ग्राउंड स्टेशनों के माध्यम से उपग्रह को उसकी कक्षा में ट्रैक करता है। ESA चंद्रयान से टेलीमेट्री प्राप्त करता है और इसे बेंगलुरु स्थित मिशन संचालन केंद्र को भेजता है। इसके साथ ही यह इसरो के कमांड को चंद्रयान को भेजता है।