10 साल बाद लौट रहा गठबंधन सरकार का दौर..जनादेश किसकी जीत, किसकी हार?

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महेंद्र प्रताप सिंह, राजनीतिक विश्लेषक
Lok Sabha Elections 2024:
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) के नतीजे सबसे अहम है। क्योंकि ये नतीजे अगले 5 साल तक देश में चलने वाली सरकार की दशा और दिशा तय करेगी। देश के सबसे बड़े चुनाव में जनता ने एक बार फिर चौंका दिया। लोकसभा चुनाव में आए जनादेश ने सारे अनुमानों को ध्वस्त कर दिया। रुझानों में भाजपा (BJP) 250 तक भी नहीं पहुंच पा रही। अंतिम नतीजे आने तक वह एनडीए (NDA) के सहयोगी दलों की मदद से 290 से ऊपर जा सकती है। इस जनादेश में कई सवाल छुपे हैं।

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Pic Social Media

लोकसभा की 542 सीटों के अभी तक सामने आए रुझानों में NDA और INDIA एलायंस के बीच कड़ी टक्कर है. NDA बहुमत के पार तो पहुंच चुकी है. लेकिन कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के इंडिया एलायंस ने भी कई राज्यों में उम्मीद से बढ़कर प्रदर्शन किया है. खास कर यूपी, महाराष्ट्र और राजस्थान के नतीजों ने चौंकाया है.

दोपहर 4 बजे तक के रुझानों में NDA को 298 सीटें मिलती दिख रही हैं। वहीं INDIA को 200 सीटों पर बढ़त हासिल हो चुकी है। बहुमत का आंकड़ा 272 है। भाजपा गठबंधन को मेजॉरिटी मिलती दिख रही है,

लेकिन क्या INDIA के भी सरकार बनाने की संभावना है। अभी तक वोटों जो नतीजे सामने आए हैं, उसके अनुसार इस बार केंद्र में एनडीए की सरकार तो बनेगी लेकिन बीजेपी अकेले दम पर बहुमत का आंकड़ा पार नहीं कर सकेगी. ऐसे में इस बार केंद्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को सहयोगी दलों पर निर्भर रहना होगा. आइए इस सियासी गणित को समझते हैं…

INDIA को 200 सीटें मिलती हैं, तो यह बहुमत से 72 सीटें पीछे रहता है। ये तो नतीजे के बाद तय होगा लेकिन वो मुद्दे जिससे बीजेपी को नुकसान पहुंचा आईए उस पर एक नज़र डालते हैं।

अबकी बार 400 पार का नारा फेल

ब्रांड मोदी (Brand Modi) के चेहरे पर चुनाव लड़ने वाली एनडीए को 400 पार और पार्टी को 370 पार ले जाने की भाजपा की रणनीति कामयाब नहीं हो पाई। जनादेश ने साफ कर दिया कि सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे के भरोसे रहने से भाजपा का काम नहीं चलेगा। उसके निर्वाचित सांसदों और राज्य के नेतृत्व को भी अच्छा प्रदर्शन करना होगा।

जनादेश बताता है कि गठबंधन (Alliance) की अहमियत का दौर 10 साल बाद फिर लौट आया है। भाजपा के पास अकेले के बूते अब वह आंकड़ा नहीं है, जिसके सहारे वह अपना एजेंडा आगे बढ़ा सके।

क्या ये सत्ता विरोधी लहर है?

1999 में 182 सीटें जीतने वाली भाजपा जब 2004 में 138 सीटों पर आ गई तो उसने सत्ता गंवा दी। उसके पास स्पष्ट बहुमत 1999 में भी नहीं था और उससे पहले भी नहीं था। फिर भी यह माना गया कि जनादेश भाजपा के ‘फील गुड फैक्टर’ के विरोध में था।

वहीं, 2004 में भाजपा से महज सात सीटें ज्यादा यानी 145 सीटें जीतकर कांग्रेस ने यूपीए की सरकार बना ली। 2009 में कांग्रेस इससे बढ़कर 206 सीटों पर पहुंच गई, लेकिन 2014 में 44 पर सिमट गई। इसे स्पष्ट तौर पर यूपीए के लिए सत्ता विरोधी लहर माना गया।

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कम मतदान से घट गई बीजेपी की सीटें ?

वैसे तो इस बार लोकसभा चुनाव के शुरुआती छह चरण में ही पिछली बार के मुकाबले ढाई करोड़ से ज्यादा वोटरों ने मतदान किया था। फिर भी मतदान का प्रतिशत कम रहा। इसके ये मायने निकाले जा रहे हैं कि भाजपा अबकी पार 400 पार के नारे में खुद ही उलझ गई। उसके वोट इसलिए नहीं बढ़े क्योंकि भाजपा को पसंद करने वाले वोटरों ने तेज गर्मी के बीच संभवत: खुद ही यह मान लिया कि इस बार भाजपा की जीत आसान रहने वाली है। इसलिए वोटरों का एक बड़ा तबका वोट देने के लिए निकला ही नहीं।

किसकी जीत, किसकी हार?

आंकड़ों की दोपहर तक की स्थिति को देखें तो यह माना जा सकता है कि पूरे पांच साल भाजपा गठबंधन के सहयोगियों खासकर जेडीयू और टीडीपी के भरोसे रहेगी। इन दोनों दलों के बारे में यह कहना मुश्किल है कि ये भाजपा के साथ पूरे पांच साल बने रहेंगे या नहीं। राज्य के लिए विशेष पैकेज और केंद्र और प्रदेश की सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर इनके भाजपा से मतभेद के आसार ज्यादा रहेंगे। नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू, दोनों ही अतीत में एनडीए से अलग हो चुके हैं।

मुकाबला मोदी बनाम विपक्ष का ?

आंकड़ों की मानें तो यह मुकाबला 2014 और 2019 में मोदी की लोकप्रियता बनाम 2024 में मोदी की लोकप्रियता का रहा। भाजपा ने नरेंद्र मोदी के चेहरे पर पहली बार 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। पहली बार में ही वह अकेले के बूते 282 सीटों पर पहुंची। 2019 में भाजपा ने 303 सीटें जीतीं। इस बार भाजपा की अपनी सीटें 240 के आसपास हैं। यानी वह 2014 से 40 सीटें और 2019 से 60 सीटें पीछे है।
क्या गठबंधन को जनता ने पंसद किया ?
इंडिया गठबंधन में शामिल दलों का चुनाव लड़ना..एक दूसरे की ताकत बनना साफ दिखा रहा है कि इस बार का जनादेश इनके पक्ष में गया।

1991 चुनाव जैसे ही नतीजे?

नतीजे 1991 के लोकसभा चुनाव जैसे हैं। तब कांग्रेस ने 232 सीटें जीतीं और पीवी नरसिंहा राव प्रधानमंत्री बने। उन्होंने पूरे पांच साल अन्य दलों के समर्थन से सरकार चलाई। इस बार भाजपा भी 240 के आसपास है। गठबंधन अब उसकी मजबूरी है।

राहुल गांधी की नीति काम कर गई ?

कांग्रेस 2014 में 44 और 2019 में 52 सीटों पर थी तो उन्हें जिम्मेदार माना गया। इस बार वह 100 सीटों के करीब है। यानी पिछली बार के मुकाबले लगभग दोगुनी सीटों पर वह जीत रही है। इसका क्रेडिट राहुल गांधी को दिया जा रहा है। क्योंकि भारत जोड़ों न्याय यात्रा के लिए राहुल गांधी ने हजारों किलोमीटर तक की पैदल यात्रा की। लोगों को अपने साथ जोड़ा। जिसका नतीजा सबके सामने है।

दूसरा बड़ा नाम है अखिलेश यादव। देशभर में भाजपा को सबसे बड़ा झटका सपा ने ही दिया है। सपा ने पिछली बार बसपा के साथ गठबंधन किया। बसपा को 10 सीटें मिली थीं, लेकिन सपा पांच ही सीटें जीत पाई थी। इस बार सपा ने कांग्रेस से हाथ मिलाया। वह 34 से ज्यादा सीटों पर जीत रही है। यह लोकसभा चुनावों में वोट शेयर के लिहाज से सपा का अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन हो सकता है। 2004 के लोकसभा चुनाव में उसे 35 सीटें मिली थीं। वहीं, वोट शेयर के लिहाज पार्टी का सबसे बेहतर प्रदर्शन 1998 में था जब उसे करीब 29 फीसदी वोट मिले थे। इस बार यह आंकड़ा 33 फीसदी से ज्यादा हो सकता है।

तीसरा बड़ा नाम हैं चंद्रबाबू नायडू। उनकी पार्टी टीडीपी आंध्र प्रदेश में सरकार बनने के करीब है और एनडीए के सबसे अहम घटक दलों में से एक रहेगी।

ऐसा ही एक नाम उद्धव ठाकरे का है। यह उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई थी। शिंदे गुट से ज्यादा सीटें जीतकर उद्धव ठाकरे यह कहने की स्थिति में होंगे कि उनकी शिवसेना ही असली शिवसेना है।

मोदी तीसरी बार बनेंगे पीएम ?

अगर भाजपा ही सरकार बनाती है तो यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हैट्रिक होगी। पीएम मोदी पंडित जवाहरलाल नेहरू के बाद वे ऐसे दूसरे नेता होंगे, जो लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री बनेंगे। 1947 में पंडित नेहरू पहली बार प्रधानमंत्री जरूर बने, लेकिन चुनावी राजनीति शुरू होने के बाद उन्होंने 1951-52, 1957, 1962 का चुनाव जीता और लगातार प्रधानमंत्री रहे। वहीं, शपथ लेने के बाद प्रधानमंत्री मोदी अटलजी की भी बराबरी कर लेंगे। अटलजी का कार्यकाल कम रहा, लेकिन उन्होंने तीन बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी।
बावजूद इसके सबकुछ चुनाव के फाइनल नतीजे और आगे की राजनीति पर निर्भर करता है।