मुराद एक मां की, किसी और केस में संभवतः पिता की भी, ऐसी ही होती है। लेकिन Alia Bhatt की मां #सोनी_राजदान ने उस मुराद को जिन शब्दों में बयां किया वो दिल छू लेने वाला है- बेटी के साथ आज मुझे #रणबीर के रुप में मुझे बेटा मिल गया…सोनी राजदान की ये पोस्ट एक शख्स के तौर पर रणबीर की जितनी तारीफ करती हो, इसमें वो सच भी कम नहीं, जिसे आज के आधुनिक दौर में लोग कुबूल नहीं कर पाए. वो सच है रिवाज का. बेटी की परवरिश आप चाहे जितने माडर्न तरीकें से करें, पढ़ाएं, लिखाएं, कभी लिंग के आधार पर भेद न करें, उसे सिर आंखों पर बिठाएं, इतना कि बेटी खुद भी अपने को बेटे से कम नहीं माने. वो पढ़ लिखकर, खुद के पैरों पर खड़े होकर चाहे जितनी बंदिशें तोड़े, लेकिन एक सच वो भी नहीं बदल पाती। बेटी है, तो शादी के बाद दूसरे के घर में जाना ही है। पुरखों ने अगर बेटियों को पराई कहा था, तो इसके पीछे हिकारत नहीं, बल्कि बड़ी लंबी तैयारी का एहसास है। इसका मतलब भले ही अलग अलग निकाले गए, क्योंकि वो अनपढ़ गंवार क्या ही करते, क्या रिवाज बदलते! पीढ़ियों से देखते आए हैं- बेटी को विदा करने की पीड़ा आसान नहीं होती, बल्कि कई मामलों में पीड़ा असह्य होती है, मैंने देखा है, 2 बहनों को विदा करते हुए झेला भी है।
बेशक, इस दर्द से तो चार सोनी राजदान भी हुई होंगी. क्योंकि तमाम आधुनिक सोच और विचार के बाद वो कमरा तो सूना ही हो गया होगा, जिसमें आलिया की किलकारियां गूंजती रही होंगी। आएगी अब भी, लेकिन बस मेहमान की तरह…लेकिन बेटी को विदा करने के साथ एक बेटा मिल जाने के जिस सुख का जिक्र किया है, वो बहुत अहम है। और अगर ये इस सुख को एक मां अपनी मार्मिक भावनाओं के साथ साझा कर रही है, तो कोई भी महसूस कर सकता है, किसी अंजाने घर और शख्स के हाथ बेटी गंवाने का दुख इसमें दूर दूर तक नहीं है। इसमें एक तारीफ आलिया की भी अलौकिक है। उसने साथी सिर्फ अपने दौर का हैंडसम सुपरस्टार नहीं, बल्कि उस शख्स को चुना, जिसका अतीत भले ही कैसोनोवा का रहा, लेकिन वर्तमान बेहतर सूझबूझ और परिवार के प्रति समर्पण का बन चुका है।
इस मिसाल के साथ देखें, तो ये समर्पण किसी भी बंधन के लिए सबसे महत्वपूर्ण होता है। ये शादी सिर्फ ये नहीं बताती, कि हर किसी को अपना साथी चुनने का हक है। बल्कि ये भी कहती है- समर्पण सिर्फ प्रेमी जोड़े के बीच पारस्परिक न रहे बल्कि ये पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर पहुंचे, तो बंधन ज्यादा बेहतर बंधता है। एक दूसरे की फिक्र के साथ पारिवारिक मेल जोल और प्रेम सुनिश्चित हो तो किसी के हाथ बेटियों के पराई हो जाने की नियति के बीच एक प्राप्ति का एहसास होता है। जैसे सोनी राजदान को हुआ। बेटी गई, बदले में बेटा मिल गया। कितनी खुशी की बात
वरिष्ठ पत्रकार कुमार विनोद के फेसबुक वॉल से साभार
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