माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के साथी ऋषिकेश उपाध्याय का 22 अगस्त 2022 को निधन हो गया। यह खबर काफी देर से मिली। ऋषिकेश एमएबीजे 1999 बैच के छात्र थे। हमेशा देसी अंदाज में दिखने वाले ऋषि का रिश्ता कालेज के हर छात्र से शानदार रहा।
(अजय द्विवेदी,ऋषिकेश जी के मित्र का संदेश👇)
ऋषिकेश उपाध्याय से मेरी मुलाक़ात 1995 में उत्तर प्रदेश के मऊ जिले में पीजी कॉलेज में हुई थी। 1998 में ग्रेजुएशन के बाद मेरे साथ राजेश सिंह और राजेश चन्द्र मिश्रा ने मास्टर करने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविदयालय भोपाल की राह पकड़ लिए.. उधर ऋषि भाई ने बीएड में एडमिशन ले लिया लेकिन उनका मन भोपाल आकर मास्टर ऑफ जर्नलिज्म करने का होता रहा। फिर अगले साल ऋषि भाई भोपाल में एडमिशन ले लिए। हालांकि हमारे तत्कालीन विभागाध्यक्ष और अभिभावक डॉ श्रीकांत सिंह सर ने कहा था कि रहने दो पत्रकारिता बीएड पूरा कर लो ठीक रहेगा, पर अपनी जिद और हम जैसे मित्रों के साथ ने आखिरकार ऋषि भाई को मास्टर डिग्री दिलवा ही दिया।
ठेठ गंवई अंदाज के साथ हसमुख और मिलनसार स्वभाव के चलते ऋषि भाई को मित्र, प्रोफेसर और विश्वविद्यालय के कर्मचारी अधिकारी सभी स्नेह करते थे। खैर सन 2000 में हम लोगों ने दिल्ली की राह पकड़ लिए और ऋषि भाई भोपाल में छूट गए। पढ़ाई के बाद कुछ समय स्वयं सेवी संस्थाओं में काम किया। दो चार महीने वाली अखबारी पत्रकारिता भी किया लेकिन सीधा सपाट ऋषिकेश पत्रकारिता की पथरीली और टेढ़े मेढ़े रास्तों पर चल नहीं सका। आखिरकार सात भाई बहनों में सबसे छोटा ऋषिकेश अपने गांव लौट आते हैं और शादी ना करते हुए मां बाप की सेवा में अपना जीवन लगा देते हैं।
व्यक्तिगत जीवन पर ज्यादा कुछ कहना ठीक नहीं लेकिन कुछ साल पहले उनके पिताजी के निधन के बाद ऋषि की इच्छा यही थी कि मां की आखिर तक सेवा करने के बाद ही कहीं निकलूंगा, पर अफसोस यह ख्वाहिश अधूरी रह गई। इस दौरान ऋषिकेश को कुछ परामनोवैज्ञानिक वृत्तियों और भविष्य कथन के कारण कई लोग ऋषिकेश को राधे गुरु के नाम से भी जानने लगे थे और अपनी अपनी समस्याओं के निवारण के लिए भी आने लगे थे। इस बीच सुगर बीपी जैसी बीमारियों ने भी ऋषि से मित्रता कर ली थी और अंत में बुखार के बाद फेफड़ों की निष्क्रियता से इस देह से नाता छूट गया।
विश्वविद्यालय के साथियों की तरफ से हमारे प्यारे ऋषि भाई को श्रद्धांजलि 💐🙏 राधे राधे