सूर्यांश सिंह, ख़बरीमीडिया
Air Pollution: दिल्ली-एनसीआर, यूपी में जहरीली हवा (Poisonous Air) बच्चों पर मौत बनकर मंडरा रही है। जहां बैक्टीरिया से ज्यादा पॉल्यूशन (Pollution) बच्चों में संक्रमण की वजह बन रहा है। वहीं पॉल्यूशन 0 से 5 साल के बच्चों की मौत का पहला कारण बन जाएगा। डॉक्टर, एनवायरमेंट (Environment) साइंटिस्ट के अलावा आईसीएमआर (ICMR) की रिसर्च रिपोर्ट में यह सच सामने आया है। रिसर्च रिपोर्ट्स के अनुसार दिल्ली-एनसीआर में हर तीन मिनट में एक शिशु की मौत (Death Of Baby) पॉल्यूशन से हो रही है। पीएम-2.5 महामारी बनने की ओर बढ़ता जा रहा है।
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आपको बता दें कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (Indian Council of Medical Research) और ग्लोबल बर्डेन आफ डिसीज की रिपोर्ट बताती है कि यूपी में फेफड़ों के संक्रमण से प्रति लाख पांच वर्ष तक के 110 से ज्यादा शिशुओं की मौत हुई। फेफड़ों के निचले भाग में संक्रमण (Infection) से बड़ी संख्या में शिशुओं की जान गई। और एनवायरमेंट पर काम करने वाली नई दिल्ली की संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने पिछले दिनों गाजियाबाद, मेरठ, फरीदाबाद, नोएडा, गुरुग्राम जैसे शहरों में वायु प्रदूषण के प्रभावों का आंकड़ा बनाया। जिस पर पर्यावरण विशेषज्ञों ने प्रेजेंटेशन दिया।
आईसीएमआर की रिपोर्ट के मुताबिक बैक्टीरियल और वायरल संक्रमण (Bacterial and Viral Infections) से ज्यादा पीएम-1 और पीएम-2.5 से शिशुओं के निचले श्वसन तंत्र में संक्रमण हुआ। बच्चों में एक्यूट ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकाइटिस और निमोनिया में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। 0-5 वर्ष और 5-14 वर्ष की उम्र के बच्चों की मौत में फेफड़े के निचले हिस्से का संक्रमण बड़ी वजह मानी जा रही है।
फेफड़ों के लोअर पार्ट में हो रहा इन्फेक्शन
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव तेवतिया (Dr. Rajeev Tewatia) का कहना है कि पांट साल तक के बच्चों की मौत में डायरिया, निमोनिया, मलेरिया, खसरा, मेनेंजाइटिस, पैदाइशी बीमारी बड़ी वजह है। लेकिन जो नए रिसर्च हैं उसमें पता चला है कि बच्चों की डेथ में बड़ा कारण उनके फेफड़ों के लोअर पार्ट में इन्फेक्शन भी आया है।
भारत में बच्चों पर ज्यादा खतरा
मेरठ मेडिकल कॉलेज में बाल रोग विभाग की डॉ अनुपमा (Dr. Anupama) का कहना है कि पॉल्यूशन की वजह से प्रति एक हजार बच्चों में सबसे ज्यादा भारत में बच्चों की जान जा रही है। भारत में प्रति हजार बच्चों पर 48 बच्चों की मौत पॉल्यूशन से होती है।
क्या बताते हैं पीएम 2.5
सामान्य आंखों से न दिखने वाले पीएम 2.5 के कण हवा (Aarticle Air) में घुला जहर है। इसमें कैडमियम, क्रोमियम, मॉलिब्डेनम, बेंजीन, निकिल, पारा, जिंक, आयरन एवं सेलेनियम जैसे हेवी मेटल हैं। जो सांस के जरिए शरीर में अंदर पहुंच कर बोन, ब्लड कैंसर बढ़ रहे हैं। ग्लोबल बर्डेन ऑफ डिसीज (Global Burden of Disease) की रिपोर्ट बताती है कि औद्योगिक चिमनियों, जनरेटरों, ईंट भठ्ठों, डीजल से संचालित पुराने वाहनों एवं प्लास्टिक कचरा जलाने से कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाई आक्साइड, ओजोन, नाइट्रोजन डाई आक्साइड, ओजोन, अमोनिया, कार्बन डाई आक्साइड जैसी खतरनाक गैसें फेफड़े में पहुंचकर जिंदगी के लिए खतरा बनती हैं।