एक खास मुलाकात में आज का हमारा सेगमेंट थोड़ा अलग हट कर है। क्योंकि आज आपके सामने हैं मल्टीटेलेंटेंड मनोज रस्तोगी। मनोज एक वरिष्ठ पत्रकार के साथ मंझे हुए राइटर, प्रोड्यूसर और फिल्ममेकर भी हैं। और अब इन्होंने अपना हुनर दिखाने के लिए नया रास्ता अपनाया है | मुख्यधारा के मीडिया से इतर मनोज रस्तोगी अब खेती-किसानी और स्टार्टअप की दुनिया मेँ कदम रखने जा रहे हैं |
सवाल- सर अपने प्रोफेशन से हटकर खेती करने की सोच कहां से आई ?
जवाब- बागवानी का शौक हमेशा से ही था, मुझे नेचर के करीब रहना पंसद है। काफी सालों से घर की छत पर गमलों और ग्रो बैग्स में बागवानी करता रहा हूँ । दस सालों से तो हमारे घर की सब्जियों का कूड़ा हम कंपोस्ट बनाकर खाद के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं । पर अब जो मैं करने जा रहा हूं वो परंपरागत खेती नहीं बल्कि हाइटेक एग्रीकल्चर है, जो आज के समय में बेहद ही फायदेमंद है।
सवाल- आपको क्या लगता है फार्मिंग करना इतना आसान है?
जवाब- मेहनत तो हर काम में है पर फार्मिंग में थोड़ी ज्यादा है। अब पढ़े लिखे लोग भी इसे अच्छे बिजनेस के तौर पर देख रहे हैं। एक खास बात बता दूं आपको कि खानपान, दवा-दारू का काम कभी बंद नहीं होगा। कोविड की त्रासदी के बाद तो आम जनता मेँ कैमिकल फ्री फल-सब्जियों(Chemical free fruits and vegetables) के प्रति रुझान बड़ा है । इसलिए भी मैंने काफी गहन शोध के बाद ही इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फॉर्मिंग (Organic Farming) में उतरने का फैसला लिया है। मैं और मेरे मित्र नीरज श्रीवास्तव मिलकर हापुड़ के करीब सात एकड़ जमीन खरीद कर मशरूम, हाइड्रपानिक्स, एक्वापोनिक्स और पॉली हाउस के साथ उन्नत तकनीक से कृषि व्यवसाय मेँ उतर रहें है।
साथ ही हमने “भारतीय अलायंस फॉर ऍग्रो इनोवेशन – भाई “ का भी गठन किया है जो किसानों को भी नवीन पद्दती से कृषि करने के लिए जागरूक करेगा।
सवाल- चलिए खेती का तो आपने ठान लिया है..अब अपने पाठकों को अपने पत्रकारिता के करियर के बारे में बताइए।
जवाब- 1989 मेँ सहारनपुर से BSC की पढ़ाई के दौरान ही मैं ‘ नुक्कड़ नाटकों , रंगमंच” से जुड़ गया था और दोस्तों के साथ मिलकर ‘युवांकर’ नाम की संस्था बनाई थी । मैं युवांकर के साथ काम करते हुए प्रेस रिलीज भी तैयार करता था। मेरी बनाई प्रेस रिलीज नवभारत टाइम्स और अन्य प्रमुख अखबारों में बिल्कुल उसी तरह छप गई जो मैंने लिखा था। मैं बेहद खुश हुआ। क्योंकि मेरे अंदर का हुनर पत्रकारिता की शक्ल ले चुका था।
उस वक्त सहारनपुर मेँ 1990 में बीजेपी के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा निकल रही थी। कर्फ्यू के बावजूद मैंने स्थानीय अखबार उदय भारत के लिए रिपोर्टिंग की। दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकारों रीटा मनचंदा और स्वर्गीय चंदन मित्र से इसी दौरान परिचय हुआ । दिल्ली में उस वक्त ‘वीर अर्जुन’ नाम का एक अखबार था। आडवाणी जी की रथयात्रा से जुड़ी 8 कॉलम की खबर इस अखबार में छपी, मेरा फोटो भी छपा, इससे मेरा उत्साह और बढ़ गया। दिल्ली आया तो रीता मनचन्दा जी ने मेरी मुलाकात राजीव शुक्ला जी से कराई जो उस समय साप्ताहिक अखबार संडे ऑब्जर्वर के संपादक थे । राजीव शुक्ला जी ने मुझे सही मायनों मे राष्ट्रीय पत्रकारिता मेँ पहला मौका दिया । फिर दैनिक ‘जन संदेश’ में बतौर उपसंपादक काम किया । 1992 में मुझे महाराष्ट्र के औरंगाबाद मेँ दैनिक देवगिरि समाचार तरूण-भारत मेँ नौकरी मिली और फिर वहीं लोकमत समाचार में भी काम किया।
सवाल- टीवी में करियर की शुरुआत कहां से हुई ?
जवाब- यहाँ भी राजीव शुक्ला जी की भूमिका रही। 1995 में उन्होंने मुझे BAG FILMS (अब न्यूज 24 ) के मशहूर टीवी टॉक शो ‘रुबरू’ की कोर टीम मेँ काम करने का ऑफर दिया । यहीं से मेरी टीवी करियर की शुरआत हुई। और तब से फिर दिल्ली ही मेरी कर्मभूमि बन गई । ये टीवी प्रोडक्शन और 24 घंटे के टीवी चैनल्स का शुरुआती दौर था। न्यूज चैनल तो आए नहीं थे। हाईबैंड कैमरा पर शूट होता था। कैसेट्स को हवाई मार्ग से हाँगकाँग या सिंगापूर भेज जाता था । भारत से अप-लिंकिंग नहीं होती थी। फ़ीड के लिए BSNL जाकर बुकिंग करनी पड़ती थी। आजतक और एनडीटीवी इत्यादि तब आए नहीं थे। टीवी और फिल्मों की दुनिया के बड़े बड़े नाम बीएजी फ़िल्म्स के साथ काम करते थे। शेफाली तलवार, मिनी माथुर, अमर तलवार, रोशन अब्बास और बहुत से । अजीत अंजुम जी के साथ रु-ब-रु के दौरान यहीं काम करने का मौका मिला। टीवी प्रोग्रामिंग और प्रोडक्शन की बारीकियाँ बीएजी फ़िल्म्स मेँ ही सीखी। बाद मेँ विपिन हांडा जी और विनोद दुआ जी सरीखे लेजेंडस के साथ भी काम किया। विनोद दुआ जी ने मुझे ‘चुनाव चुनौती विद विनोद दुआ एण्ड मार्क टूली’ कार्यक्रम जो सोनी टीवी बनाया गया था , मे चीफ रिपोर्टर के तौर पर मौका दिया । चुनाव कवरेज की , प्रोग्राम बनाए। फिर जब जैन टीवी 1999 मेँ हिन्दी का पहला 24 घंटे का टीवी चैनल शुरू किया तो वहाँ पहले दिन से ही विशेष संवाददाता(Special Correspondent) के तौर पर जॉइन किया। पूरे देश मे चुनाव कवर करने का मौका मिला । वो मेरे लिए अच्छे दिन थे।
सवाल- फिर सुना है कि आपने अपनी कंपनी भी रजिस्टर्ड की जिसके तहत आपने टीवी शोज, टेलीफ़िल्म्स और फीचर फिल्में भी बनाई ?
जवाब- हाँ, मैं एक काम से जल्दी ही बोर हो जाता हूँ। हमेशा कुछ नया और क्रिएटिव करने की तलाश मुझे प्रेरित और संचालित करती रही। सामाजिक सरोकारों और टीवी जैसे सशक्त माध्यम को बदलाव के उत्प्रेरक के तौर पर इस्तेमाल के लक्ष्यों को लेकर ही साल 2000 में मैंने अपनी कंपनी टेलीमीशन रजिस्टर्ड की और इंडिपेंडेंट टीवी प्रोड्यूसर के तौर पर काफी पापड़ बेले और जूते घिसे । थारू आदिवासियों पर ट्राइबल अफेयर मिनिस्ट्री के लिए एक डॉक्यूमेंट्री का लेखन, निर्देशन और निर्माण किया । धक्के तो दूरदर्शन और मंत्रालयों मे भी बहुत खाए। डीडी मेट्रो(DD METRO) पर प्रतिभा आडवाणी को ऐंकर लेकर एक सेलिब्रिटी टॉक शो का निर्देशन भी किया । सरकारी तंत्र की लालफ़ीताशाही मुझे ज्यादा रास आई नहीं और मुझे मुंबई की फिल्मों की रचनात्मक स्वतंत्रता ने खींच लिया ।
सपना बहुत बड़ा था , मैंने वरिष्ठ पत्रकार और लेखक कमलेश्वर जी के साथ मिलकर इंदिरा गांधी पर बायोपिक बनाने का प्रयास किया। निर्माता नितिन केनी ( गदर) , निर्देशक एन चंद्रा , मनीष कोइराला को साथ लेकर एक टीम भी बनाई ।
काम शुरू भी हुआ ,पर फिल्म अटक गई। देश तब राजनेताओं पर फिल्मों के लिए तैयार नहीं था। तो मुंबई दिल्ली के बीच काफी टांग तुड़ाई हुई , मुंबई वैसे भी कभी मुझे रहने के लिए आकर्षित नहीं करती थी। लिहाज़ा बेस दिल्ली ही रहा और फिर एक बार बीएजी फ़िल्म्स से जुड़ा एग्जिक्यूटिव एडिटर(Executive Editor) के तौर पर , इस बार डेली न्यूज बुलेटिन “ खबरें रोजाना” को देखा , स्टार न्यूज के लिये कमर वहीद नकवी दादा और संजय सलिल इत्यादि के साथ 24 घंटे के न्यूज टीवी चैनल के लिए नेटवर्क बनाने से लेकर असाइनमेंट तक सब काम देखा। तब अजित अंजुम आजतक मेँ थे। वो वापिस बीएजी आ गए । मैंने तरुण तेजपाल की खोजी मैगजीन तहलका जॉइन कर ली। तहलका टीवी लाने की तैयारी थी।
सवाल- आपने पत्रकारिता से कुछ समय के लिए ब्रेक लेकर ओमेक्स फाउंडेशन भी ज्वाइन किया। इसके पीछे की वजह ?
जवाब- लीक से हटकर कुछ रचनात्मक करने की चाह ही मुझे 2007 में ओमेक्स ग्रुप ले गई । लेखक कहानीकार अपूर्व जोशी ( पाखी के संपादक प्रकाशक ) के साथ मिलकर ओमेक्स फाउंडेशन का गठन किया। यहां मैंने कौव्वा-हांकिनी नाम की टेली फिल्म का निर्माण किया जो बालिका शिक्षा सेव द गर्ल चाइल्ड(Save the girl child) पर आधारित थी।
इसका निर्देशन अंजनी कुमार ने किया जो खुद एक प्रतिबद्ध कलाकर्मी हैं और महेश भट्ट, महेश मांजरेकर , प्रकाश झा के साथ सह निर्देशक के तौर पर बड़ा काम कर चुके थे । इसके अलावा मैंने पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल की जिंदगी पर आधारित डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘प्रतिभा ताई पाटिल’ भी बनाई।
धारावाहिक दुलारी का निर्माण भी किया जिसमे राम गोपाल बजाज, रिंकू घोष , परितोष सांड और एन एस डी के नामी कलाकार थे। अंजनी कुमार ने इसका निर्देशन किया था। 2007 मे प्रतिभा पाटील जी जब राष्ट्रपति बनी तो कुछ समय उनके निजी मीडिया सलाहकार के तौर पर भी जुड़ा रहा । सेव दी गर्ल चाइल्ड कैम्पैन वहाँ किया। दिल मे रेडियो सिटी के लिए दिल्ली सरकार के साथ कॉमनवेल्थ खेलों(Commonwealth Games) के पहले नागरिक चेतना और भागीदारी के विचार पर आधारित अडवोकेसी कैम्पैन किया जो काफी सफल हुआ।
सवाल- तो फिर आपने टीवी न्यूज इंडस्ट्री में दोबारा वापसी क्यों की ?
जवाब- हिन्दी टीवी न्यूज मेँ एक संतुलित और निष्पक्ष टीवी चैनल बिना शोर ,नौटंकी और बिना राजनीतिक प्रोपैगंडा के भी स्थापित किया जा सकता है। बस यही साबित करने की ललक मेँ मैंने 2014 में बतौर CEO एंड एडिटर भास्कर न्यूज(Bhasker News) ज्वाइन किया था । इसके बाद न्यूज वर्ल्ड इंडिया न्यूज चैनल मेँ भी इसी सोच से गया था। यहां एक बार फिर विनोद दुआ के साथ जम कर काम करने का मौका मिला । मैं उनके शो का Producer भी था।
सवाल- पत्रकारिता, फिर एनजीओ, अब किसानी..कैसे देखते हैं ?
जवाब- टीवी मीडिया में अब मुझे घुटन होने लगी थी। यहां भक्तों , ट्रोलर्स का बोलबाला है। क्रिएटिव या इंडिपेंडेंट माइन्ड के लोगों के लिए अब जगह कहां है ? सर्कस या फूहड़ हास्य या चीखना चिल्लाना करना है तो फिर फिल्में और ओटीटी क्या बुरा है। ? मैं तो पहले से ही कुछ अलग करने की जुगत मे था। कुछ ऐसा जिसमे मन लगे, इज्जत से दाल रोटी मिल सके और आत्मा पर किसी की गुलामी का बोझ भी ना हो। ऑर्गेनिक फॉर्मिंग, हाइटेक फार्मिंग से बेहतर विकल्प मुझे कहीं और नजर नहीं आया। जिस तरह की फॉर्मिंग की मैं बात कर रहा हूं वो परंपरागत खेती से बिल्कुल अलग है। पहले वाली खेती में वक्त ज्यादा और फायदा कम था। इसलिए हमने उन्नत कृषि का फैसला लिया। बहुत कम किसान ऐसे हैं जिन्हें मार्केटिंग और सप्लाई का ज्ञान है। इसी गैप को भरने के लिए मैं अर्बन फार्मिंग(Urban Farming) से जुड़ गया। मेरे फिल्म मेकर मित्र मुंबई के अंजनी कुमार भी इसमे शामिल हैं। महाराष्ट्र के पालघर में अंजनी दो साल से हाइटेक फार्मिंग कर रहे है। केमिकल फ्री सब्जी उगा रहे हैं। खंडाला से लेकर लोखंडवाला तक सब्जियां भेज रहे है। अंजनी ने अपनी मुहिम में महिलाओं के साथ आदिवासी समुदाय को भी जोड़ा है। उनसे बहुत प्रेरणा मिली । इसके अलावा जल्द ही कई स्टार्टअप भी शुरू कर रहा हूँ। इनमे पहला “ अडवोकेर” है। अभी ज्यादा बता नहीं सकता । पर जल्दी ही सब सामने आ जाएगा। युवाओं को जोड़ेगे। कंपनी बन गई है। ऑफिस लिया है। मोबाईल एप(Mobile App) भी बन गया है। युवाओं की मेंटोरशिप भी कर रहा हूँ। जो भी युवा या नया कुछ करने की इच्छा रखने वाले साथी जो दूसरी पारी के लिए तैयार हो, उनका स्वागत है, आइए मिलकर cooperative स्ट्रक्चर के तहत काम करेंगे ।
सवाल- स्टार्टअप में परिवार का किस तरह साथ मिला ?
जवाब- बिना परिवार के सहयोग से कुछ नहीं हो सकता। इस प्रोजेक्ट को शुरू करने में मेरी पत्नी समिधा वर्मा का भी बहुत सहयोग मिला। वो हर अच्छे-बुरे वक्त में मेरे साथ खड़ी रहीं।
सवाल- पत्रकारिता के छात्रों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे ?
जवाब- युवाओं के लिए पत्रकारिता अब ग्लैमर बन चुका है। हर किसी को एंकर, रिपोर्टर बनना है। खबर क्या है ? खबर के वास्तविक ज्ञान से वो कोसों दूर हैं। ऐसे में पत्रकारिता वो तभी चुनें जब उन्हें लगता है कि वो इस फील्ड में कुछ कर पाएंगे। सिर्फ दिखावे के लिए इस प्रोफेशन को चुनना गलत है।
खबरी मीडिया की तरफ से आपको नए आगाज के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं।
मनोज रस्तोगी युवा पत्रकारों और इस क्षेत्र में करियर बनाने वाले इच्छुक लोगों की मेंटरशिप के लिए उपलब्ध हैं।
मनोज रस्तोगी की ईमेल आईडी: manojrastogi71@gmail.com
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Link: Manoj Rastogi, Film Producer, Writer, Senior Journalist, Farming Business, Organic Farming, Save the girl child, khabrimedia, Ek mulakat, Hindi News, Latest Breaking News