Harishankar Parsai Biography: हरिशंकर परसाई उत्तम कोटि के व्यंग्यकार माने जाते हैं। हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) ने 20 से अधिक रचनाएं हिंदी जगत को प्रदान की हैं। हरिशंकर परसाई की समकालीन राजनीति पर बड़ी पैनी निगाह थी। हर कवि और लेखक के अपने लिखने का एक तरीका और स्वभाव होता है हरिशंकर परसाई की रचनाओं की भाषा व्यंग प्रधान भाषा होती थी। उन्होंने अपनी रचनाओं में सामान्य भाषा का प्रयोग किया है। आइए आज हम हरिशंकर परसाई के जीवनी के बारे में जानते है।
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हरिशंकर परसाई का जन्म
हिंदी साहित्य के यशस्वी निबंधकार हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) का जन्म 22 अगस्त सन 1922 ईस्वी में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के जमानी गांव में हुआ था। हरिशंकर परसाई के पिता का नाम जुमक लालू प्रसाद और उनकी माता का नाम चंपा बाई था। परसाई जी के 4 भाई बहन थे और उनके माता पिता का मृत्यु बचपन में ही हो गया था। जिससे सभी भाई बहनों के पालन पोषण का जिम्मेदारी हरिशंकर परसाई के ऊपर ही आ गया था। हरिशंकर परसाई का बचपन बहुत ही परेशानियों और कठिनाइयों से में व्यतीत हुआ था।
हरिशंकर परसाई की शिक्षा
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में ही प्राप्त की। उसके बाद में इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में परास्नातक (MA) की उपाधि प्राप्त की। पढ़ाई पूरा होने के बाद उन्होंने वन विभाग में भी नौकरी की। लेकिन वह नौकरी उन्होंने कुछ ही दिनों बाद छोड़ दिया। और किसी स्कूल में अध्यापक के पद पर नौकरी कर लिया। लेकिन इसमें उनका मन नहीं लगा और वह नौकरी छोड़ दिए नौकरी छोड़ने के बाद हरिशंकर परसाई ने लेखन प्रारंभ किया उन्होंने अपना स्वतंत्र लेखन लिखना शुरू किया। इसी क्रम में उन्होंने जबलपुर से साहित्यिक पत्रिका वसुधा का प्रकाशन भी प्रारंभ किया था।
हरिशंकर परसाई की साहित्यिक विशेषताएँ
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की गणना हिंदी के श्रेष्ठ व्यंग्य लेखको में होती है। इनके साहित्य की विशेषताओं का आधार भी उनके व्यंग लेखन ही है। इन्होंने अपने व्यंग्यों के लिए जिन विषयों का चुनाव किया है, वह विषय निश्चित तौर पर हमारे आसपास ही घटित होते दिखाई देते हैं। फैशन परस्ती, अवसरवादिता, झूठा मान-सम्मान, चुनाव व्यवस्था, राजनीतिक दांव पेंच, स्वार्थ, भ्रष्टाचार, धर्म, शिक्षा, स्वास्थ्य के नाम पर ठगी, एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़, भाई भतीजावाद, चरित्र-हीनता आदि इनके प्रमुख विषय रहे हैं।
इन्होंने अपनी रचनाओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों तथा जड़ परंपराओं पर करारा व्यंग्य किया है। यह भारतीय जीवन के पाखंडों का पर्दाफाश करते दिखाई देते हैं। उनका व्यंग्य बड़ा तीखा और चूभने वाला है। इनका व्यंग्य केवल मनोरंजन के लिए नहीं है। इन्होंने अपने व्यंग्य के द्वारा बार-बार पाठकों का ध्यान व्यक्ति और समाज की उन कमजोरियों और विसंगतियों की ओर आकृष्ट किया है जो जीवन को दूबर बना रही हैं।
हरिशंकर परसाई का व्यक्तित्व
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की समकालीन राजनीति पर बड़ी पैनी निगाह थी। वे समाजवादी होते हुए भी वामपंथी दलों और वामपंथी लेखक संगठनों पर करारा प्रहार करने में कोई कोताही नहीं बरतते थे। सुप्रसिद्ध समालोचक डॉ रामविलास शर्मा यदि कबीर के बाद प्रेमचंद को स्वाधीनता आंदोलन का व्यंग्यकार मानते हैं तो परसाई जी को स्वतंत्रता के बाद भारत का समकालीन राजनीति के साथ-साथ धार्मिक खोखले पन और पाखंड पर उनकी दिलचस्पी कम नहीं थी। उनकी पहली रचना स्वर्ग से नरक धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास पर करारा प्रहार है। हरिशंकर परसाई कार्ल मार्क्स से अधिक प्रभावित है।
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) उत्तम कोटि के व्यंग्यकार माने जाते हैं। उन्होंने अपनी रचना कौशल से व्यंग्य को साहित्यिक विधा का दर्जा दिलाने में सफलता प्राप्त की है। उनका व्यंग मनोरंजन और विलास की सामग्री मात्र न होकर समाज की कुरीतियों पर गहरा कटाक्ष है। भ्रष्टाचार और शोषण पर भी उनके व्यंग बहुत गहरे हैं। मध्यवर्गीय लोगों में झूठी शान पाने की ललक पर उन्होंने गहरी चोट की है। प्रेमचंद के फटे जूते और दो नाक वाले लोग शीर्षक निबंध में उन्होंने इन प्रवृत्तियों को गहराई से बताया है।
हरिशंकर परसाई की भाषा शैली
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की भाषा शैली व्यंग प्रधान है। साधारण बोलचाल की भाषा में लिखे छोटे-छोटे वाक्य गंभीर व्यंग से उत्तम उदाहरण है, जो आसानी से हृदय की गहराइयों में उतरने में सक्षम है। तत्सम, तद्भव, उर्दू और विदेशी भाषाओं के शब्दों के प्रयोग से भाषा में और जान आ जाती है। व्यंग प्रधान होने के बावजूद उनकी रचनाओं में करुणा और सौंदर्य बोध के भी दर्शन हो जाते हैं। फिर भी उसी नर्मदा मैया की जय नामक निबंध में 16 वर्षीय केवट कन्या का करुणा और त्याग इसके प्रत्यक्ष प्रमाण दिया गया है।
हरिशंकर परसाई की प्रमुख रचनाएं
हरिशंकर परसाई मुख्य रूप से गद्य लेखक है। इन्होंने अपनी लेखनी से हिंदी व्यंग साहित्य को समृद्ध किया है।
हरिशंकर परसाई की कहानी संग्रह- हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे।
हरिशंकर परसाई का उपन्यास- रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज।
हरिशंकर परसाई का निबंध संग्रह- तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेईमानी की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार की ताबीज, शिकायत मुझे भी है, और अंत में।
हरिशंकर परसाई व्यंग्य-निबंध संग्रह- वैष्णव की फिसलन, तिरछी रेखाएं, ठिठुरता हुआ गणतंत्र, विकलांग श्रद्धा का दौर।
उनकी सभी रचनाएं हरिशंकर परसाई रचनावली के नाम से 6 भागों में प्रकाशित हैं।
हरिशंकर परसाई को मिला पुरस्कार और सम्मान
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) को समय-समय पर साहित्य लेखन के लिए विभिन्न पुरस्कारों एवं सम्मान से नवाजा गया। इन्हें मिले कुछ प्रमुख पुरस्कार एवं सम्मान निम्नलिखित हैं।
विकलांग श्रद्धा का दौर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार (Sahitya Akademi Award) से सम्मानित किया गया।
मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग का पुरस्कार
चकल्लस पुरस्कार
शरद जोशी सम्मान
जबलपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हे डी. लिट् (D.Litt) की उपाधि से सम्मानित किया गया।
हरिशंकर परसाई की मृत्यु
हरिशंकर परसाई (Harishankar Parsai) की मृत्यु 10 अगस्त 1995 को हुआ था उनका मृत्यु मध्यप्रदेश के जबलपुर में ही हुआ था। उनके मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत से एक प्रसिद्ध व्यंग्यकार का अंत हो गया। वहीं हमेशा सच्चाई को दबाया जाता है उसको बहुत ही अच्छे से पहचान जाते थे और उसको खोखली रीति-रिवाजों को वह अपनी लेखनी के बल से विरोध करते थे। प्रसिद्ध व्यंग्यकार की मृत्यु से हिंदी साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति हुई।