कुमार विकास.. ख़बरीमीडिया
उत्तरप्रदेश की राजधानी से एक बहुत ही बड़ी ख़बर सामने आ रही है जहां बाहुबली मुख्तार अंसारी के करीबी और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी संजीव जीवा माहेश्वरी की लखनऊ में दिनदहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी गई है. इस हत्याकांड में हैरान करने वाली बात यह है कि हमलावरों ने वारदात को कोर्ट परिसर में अंजाम दिया है, जिसके लिए वह बकायदा वकील की ड्रेस पहनकर अदालत पहुंचे थे.
इस फायरिंग में एक बच्ची और एक महिला को भी गोली लगी है. घटना के बाद एक शूटर को गिरफ्तार कर लिया है. वारदात को अंजाम देने वाले हमलावर की पहचान जौनपुर के केराकत निवासी विजय यादव के रूप में हुई है.संजीव जीवा बीजेपी नेता ब्रह्मदत्त दिवेदी की हत्या का मुख्य आरोपी था. इसके अलावा वह कई दूसरे मामलों में दोषी था।
पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार, संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा पर दो दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज हुए थे, इनमें से 17 मामलों में संजीव बरी हो चुका था, जबकि उसकी गैंग में 35 से ज्यादा सदस्य हैं. संजीव पर जेल से भी गैंग ऑपरेट करने के आरोप लगते रहे हैं. हाल ही में उसकी संपत्ति भी प्रशासन द्वारा कुर्क की गई थी.
मुजफ्फरनगर के रहने वाले संजीव माहेश्वरी ने 90 के दशक में अपना खौफ पैदा शुरू किया, फिर धीरे-धीरे वो पुलिस व आम जनता के लिए सिर दर्द बनता चला गया. हाल में शामली पुलिस ने उसी की गैंग के एक शख्स को एके-47 और सैकड़ों कारतूसों और तीन मैगजीन के साथ पकड़ा था. अपराध की दुनिया में आने से पहले वो एक मेडिकल स्टोर में कंपाउंडर की नौकरी करता था. इसी नौकरी के दौरान जीवा ने मेडिकल स्टोर के मालिक को ही अगवा कर लिया था. इस घटना के बाद उसने 90 के दशक में कोलकाता के एक कारोबारी के बेटे का भी अपहरण किया. फिरौती दो करोड़ की मांगी थी. इसके बाद जीवा हरिद्वार की नाजिम गैंग में घुसा और फिर सतेंद्र बरनाला के साथ जुड़ा. लेकिन उसके अंदर अपनी गैंग बनाने की तड़प थी.
10 फरवरी 1997 को हुए ब्रह्मदत्त द्विवेदी हत्याकांड के चलते संजीव जीवा का नाम संगीन अपराधी के रूप में जाना जाने लगा. ब्रह्मदत्त द्विवेदी भाजपा के कद्दावर नेता थे. उनकी हत्या के मामले में संजीव जीवा को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी. थोड़े दिनों बाद जीवा मुन्ना बजरंगी गैंग में घुस गया. इसी कड़ी में उसका संपर्क मुख्तार अंसारी से हुआ. बताया जाता है कि कि मुख्तार को आधुनिक हथियारों का शौक था और जीवा के पास हथियारों को जुटाने का तिकड़मी नेटवर्क. इसके चलते उसे अंसारी का खासा अटेंशन मिला. आगे चलकर दोनों का नाम कृष्णानंद राय हत्याकांड में आया. हालांकि इस मामले में 2005 में कोर्ट ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया था.