अनुराग उपाध्याय, भोपाल
भाजपा को धीरे का झटका जोर से
मध्यप्रदेश में स्थानीय निकायों के चुनाव ने भाजपा को धीरे का झटका भी जोर से दिया है। भाजपा की जीत से ज्यादा चर्चा उसके सात महापौर प्रत्याशियों के हारने की है। भाजपा की भीतरी राजनीति में सब कुछ ठीक नहीं है ये इस बात का सबूत भी है। जनता ने कई जगह भाजपा के पार्षद जिता दिए लेकिन महापौर प्रत्याशी को लायक नहीं समझा। जहाँ जहाँ भाजपा हारी उसने वहां अपना पारम्परिक प्रचार छोड़ कर सोशल मीडिया के जरिये चुनाव जीतने की कोशिश की ,जिसमें वो असफल साबित हो गई। वहीँ दूसरी तरफ कांग्रेस के पांच महापौर प्रत्याशी विजयी होने से कांग्रेस को इस संक्रमण काल में एक बूस्टर डोज मिल गया है। भाजपा के गलत प्रत्याशी चयन ने आम आदमी पार्टी और निर्दलीय तक को महापौर बनने तक का मौका दे दिया है।
परिणामों से सब खुश हैं
स्थानीय निकाय चुनाव ने जहाँ कांग्रेस को ताकत दी है। वहीँ ये भाजपा के लिए कई सबक देने वाला साबित हुआ है। इसके बावजूद भाजपा और कांग्रेस अपनी अपनी जीत का जश्न मना रहे हैं। कुल मिला कर इस चुनाव के परिणामों ने सब को खुश कर दिया है। भाजपा अपने नौ महापौर बचा के खुश है। कांग्रेस अपने पांच महापौर बना के खुश है। AAP एक जगह झाड़ू लगा के खुश है। और निर्दलीय एक महापौर बना के खुश हैं।
अमीर हारा ,गरीब जीता
लोकतंत्र की यही ताकत और खूबसूरती है कि कई बार चुनाव के परिणाम बहुत ही विलक्षण और हतप्रभ करने वाले आते हैं। इस बार निकाय चुनाव में इंदौर से कांग्रेस के महापौर प्रत्याशी ,विधायक संजय शुक्ला सबसे अमीर प्रत्याशी थे। लोग उनके विजयी होने की उम्मीद भी लगाए थे। संजय शुक्ला सामाजिक और राजनैतिक तौर पर भी किसी से कम नहीं हैं। लेकिन इसके बावजूद वे भाजपा के पुष्यमित्र भार्गव से बड़े अंतर से चुनाव हार गए। वहीँ छिंदवाड़ा से कांग्रेस के महापौर पद के उम्मीदवार विक्रांत अहाके सबसे कम पैसे वाले या यूँ कहें गरीब प्रत्याशी थे।लेकिन वे चुनाव जीत गए और उन्होंने पूर्व अधिकारी भाजपा प्रत्याशी अनंत धुर्वे को हरा दिया। विक्रांत बड़ी मशक्क्त से आगे आये हैं उन्होंने केटरिंग सर्विस में काम कर के प्लेटें तक धोयी हैं। लेकिन अब वे छिंदवाड़ा के महापौर हैं।
[लेखक दखल न्यूज़ चैनल के मुख्य संपादक हैं ]