Garhwal Lok Sabha Election Result 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में एक बार फिर से NDA की सरकार को बहुमत मिला है और प्रधानमंत्री के रूप में नरेन्द्र मोदी ने शपथ ले लिया है। पिछले बार की तरह इस बार भी उत्तराखंड की सारी सीटें बीजेपी (BJP) के ही खातें में आई है। उत्तराखंड की पौड़ी (Pauri) लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को गढ़वाल लोकसभा के नाम से भी जाना जाता है। यहां से बीजेपी के अनिल बलूनी ने बड़ी जीत हासिल की है। अनिल बलूनी (Anil Baluni) को 432159 वोट मिले। बलूनी ने ये सीट 1 लाख 60 हजार से ज्यादा मतों से जीत ली।
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अनिल के सामने कांग्रेस (Congress) के गणेश गोदियाल चुनावी मैदान में थे। लोकसभा चुनाव 2014 (Loksabha Elections 2014) से ये इस सीट पर बीजेपी (BJP) का ही कब्जा है। लोकसभा चुनााव पहले चरण में पौड़ी गढ़वाल में 48.79 प्रतिशत मतदान हुआ है। आपको बता दें कि यह संसदीय क्षेत्र 1957 में लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया था। गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में 05 जिले और 14 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इन 5 जिलों में चमोली, नैनीताल का कुछ भाग, पौड़ी गढ़वाल, रुद्रप्रयाग (Rudraprayag) और टिहरी गढ़वाल का हिस्सा भी शामिल है।
अनिल बलूनी ने लहराया जीत का परचम
2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने बीजेपी सांसद और पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूड़ी (Bhuvan Chandra Khanduri) के बेटे मनीष खंडूड़ी को चुनावी मैदान में उतारा था जिसके चलते यह सीट लोकसभा 2019 में हॉट सीट हो गई थी। बीजेपी ने इस बार तीरथ सिंह रावत का टिकट काटर अनिल बलूनी (Anil Baluni) को मैदान में उतारा और उन्हें जीत मिली। इससे पहले बलूनी राज्यसभा सांसद थे।
जानें गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र के बारे में
पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार भक्त दर्शन ने गढ़वाल लोकसभा सीट से जीत हासिल की थी। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी कांग्रेस प्रत्याशी भक्त दर्शन इस सीट पर चुनाव जीतते रहे। 1971 में कांग्रेस ने भक्त दर्शन की बजाय प्रताप सिंह नेगी को टिकट दिया और उन्होंने भी कांग्रेस को जीत दिलाई। 1977 में कांग्रेस ने एक बार फिर नए उम्मीदवार चंद्र मोहन सिंह को टिकट दिया लेकिन चंद्र मोहन सिंह कांग्रेस का विजय रथ आगे नहीं ले जा पाए और पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा।
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कांग्रेस को मिली थी निराशाजनक हार
चंद्र मोहन ने कांग्रेस के उम्मीदवार सतपाल महाराज को कम ही अंतर से हराया। यह हार कांग्रेस के लिए काफी निराश कर देने वाली थी। 1991 में एक बार फिर कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने पहली बार जीत हासिल की। 1991 के चुनाव में बीजेपी के टिकट पर मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी चुनाव लड़े और कांग्रेस उम्मीदवार सतपाल महाराज को करारी मात दी।
भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दिखाया दम
कांग्रेस के टिकट पर दो बार हार झेलने के बाद सतपाल महाराज ने कांग्रेस का साथ छोड़ दिया और ऑल इंडिया इंदिरा कांग्रेस (तिवारी) पार्टी ज्वाइन करी। इस पार्टी से सतपाल महाराज ने 1996 में जीत हासिल की और भाजपा उम्मीदवार मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी को हराया। हालांकि 1998, 1999 और 2004 में मेजर जनरल (सेनि) भुवन चंद्र खंडूड़ी ने अपनी हार का बदला लिया और लगातार तीन बार अपनी जीत दर्ज की।
2009 में कांग्रेस लौटी लेकिन 5 साल बाद बीजेपी ने सीट छीनी
2009 में 15वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस का वनवास खत्म हुआ और गढ़वाल लोकसभा सीट पर सतपाल महाराज को एक बार फिर चुनाव लड़वाया गया। कांग्रेस में वापसी के बाद सतपाल महाराज ने भाजपा के तेजपाल सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा था लेकिन वह यहां से भाजपा को जिताने में नाकामयाब रहे। वर्ष 2014 में भाजपा से भुवन चंद्र खंडूरी एक बार फिर मैदान में आए और कांग्रेस के हरक सिंह को हराकर बाजी मारी। 2019 में 17वीं लोकसभा के चुनाव में बाजी भाजपा के हाथ रही और तीरथ सिंह रावत यहां से सांसद बने।
जानिए 52 गढ़ों वाली सीट को
पौड़ी गढ़वाल संसदीय सीट को 52 गढ़ों वाली सीट भी कहा जाता है। तीर्थ स्थल बद्रीनाथ धाम से शुरू होकर इस सीट की यात्रा केदारनाथ धाम के साथ ही सिखों के पवित्र हेमकुंड साहिब से होते हुए मैदान की ओर उतरती है और तराई में रामनगर, कोटद्वार तक जाकर खत्म होती है। इस लोकसभा सीट को चमोली, नैनीताल, पौड़ी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल और रुद्रप्रयाग जिलों के इलाकों को मिलाकर बनाया गया है। गढ़वाल संसदीय सीट में 14 विधानसभा क्षेत्रों को शामिल किया गया है। यह क्षेत्र तिब्बत और नेपाल देश से भारत की सीमाओं से लगता है। गढ़वाल को भी दो भागों पौड़ी और टिहरी गढ़वाल में बांटा गया है। चांदपुर किला, श्रीनगर, बद्रीनाथ मंदिर, पांडुकेश्वर, जोशीमठ के निकट ही देवलगढ़ मंदिर इसी क्षेत्र में आते हैं।
जब गढ़वाल लोकसभा सीट पर हुआ उपचुनााव
गढ़वाल मंडल में आने वाली पौड़ी गढ़वाल लोकसभा सीट से तीरथ सिंह रावत सांसद रह चुके हैं। तीरथ सिंह रावत उत्तराखंड के सीएम भी रहे हैं। 2014 से पहले यह कांग्रेस का गढ़ माना जाता था। यहां अब तक हुए आम चुनावों और दो उपचुनावों में कांग्रेस ने 7 चुनाव जीते। 1982 के उप चुनाव में यह सीट पूरे देश के लिए सियासत का केंद्र बन गई क्योंकि उस समय इस सीट पर हेमवती नंदन बहुगुणा के इस्तीफा देने के बाद यह सीट खाली हो गई। उपचुनाव बहुगुणा बनाम इंदिरा हो गया था।