पत्रकार अभिषेक तिवारी की कलम से
एक लड़का भोपाल में एंकरिंग करता था, फिर सब छोड़कर दिल्ली आ गया। एक नेशनल चैनल में काम किया। शर्त ये थी कि एंकरिंग के साथ डेस्क का काम भी करना पड़ेगा, उसने किया, सब किया…. लुक्स पर सवाल हुए, तो उसे भी ठीक किया. थोड़ा self respect वाला लड़का है, बिना सच्चे मन के हर जगह नहीं झुकता, ये बात भी खटकती थी लोगों को… धीरे धीरे उसे डेस्क में इतना काम मिला, कि एंकरिंग करना उसके लिए मुश्किल हो गया।
वो डेस्क में काम करता था तो लोगों को उसपर doubt था, मुझे भी था… मगर एक दिन भोपाल के अस्पताल में देर रात आग लगी, कई बच्चे झुलस गए. उस दिन रात में कोई एंकर नहीं था, लड़के ने मोर्चा संभाला… Nonstop 4 घंटे live एंकरिंग की थी शायद… एक भी शब्द रिपीट नहीं किया… उस दिन उसके काम की हैसियत पता चली मुझे। मजा आ गया लेकिन इतना काफी नहीं था, धीरे धीरे उसका शोषण हुआ ( किसी ने जानबूझकर नहीं किया, परिस्थिति ही ऐसी बनी ) समय बीता, उसने 14-14 घंटे काम किया, पर लोगों के मुताबिक, एंकरिंग करना है तो ये सब करना पड़ेगा. अब पानी सिर के ऊपर गया, उसकी शिफ्ट टाइमिंग और workload की वजह से एंकरिंग छीन ली गयी। उसने भी धीरे से उस चैनल को छोड़ दिया। किस्मत की मनहूसियत ने लेकिन पीछा नहीं छोड़ा। किसी ना किसी वजह से उसे अभी तक एंकरिंग में एक अच्छी जगह नहीं मिली है…वो भी मानने को तैयार नहीं है… कोशिश कर रहा है… उम्मीद है कि बात बनेगी एक दिन।