नमस्कार..ख़बरी मीडिया के खास सेगमेंट एक मुलाकात में आज हमारे साथ बेहत ख़ास मेहमान जुड़ी हैं। Beauty with Brain, Most talented डॉ. पूजा सिंह गंगानिया। Dr. Pooja Singh Gangania को हम मल्टीटैलेटेंड इसलिए कह रहे हैं क्योंकि वो एक डॉक्टर होने के साथ-साथ समाजसेवी, बीजेपी कार्यकर्ता और लेखिका भी हैं। डॉ. पूजा की सबसे ख़ास बात ये कि वो समाज के गरीब पिछड़े वर्ग, गरीब महिलाओं, बच्चों के लिए कुछ करना चाहती हैं और समय-समय पर करती भी रहती हैं। डॉ. पूजा सिंह गंगानिया से उनके पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बारे में सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू करते हैं।
डॉ. पूजा सिंह गंगानिया.. सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता, कवयित्री, लेखिका, मेडिकल प्रोफेशनल एक साथ इतनी जिम्मेदारी कैसे हैंडल कर लेती हैं?
डॉ. कुंवर बेचैन जी की बहुत प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं, “किसी भी कार्य को करने की चाह पहले आती है” यानी सब इच्छा शक्ति का विषय है अगर आपको अपने कार्य से बेइन्तहा प्रेम हैं तो आप एक साथ सब कुछ बहुत आराम से हैंडल कर सकते हैं। मेरा मानना है – “जहाँ चाह है वहाँ राह है”। जब आप ठान लेते हैं तब कोई बाधा नहीं लगती स्वतः ही सब आसान हो जाता है ।
आप बीजेपी की सक्रिय कार्यकर्ता भी हैं..क्या राजनीति में भविष्य तलाश रही हैं
नहीं, यक़ीन मानिए राजनीति में, मैं अपना भविष्य बनाने के लिए नहीं आयी हूँ। मेरा मानना है की हम दूर खड़े होकर सरकार या सियासत को कोस नहीं सकते। अगर हम, पढ़े लिखे लोग ऐसा मानते हैं कि समाज में कुछ ग़लत है और वह ग़लत बेहतर किया जा सकता है तो हमें आगे आना होगा। यह तो अनेकानेक बार सुना ही होगा आपने की राजनीति में बहुत कीचड़ है, किन्तु मेरा प्रश्न यह है कि कीचड़ को बिना कीचड़ में उतरे कैसे साफ़ किया जा सकता है ?
भगतसिंह राजगुरु तो सबको चाहिए, पर अपने नहीं दूसरे किसी परिवार से। राजनीति में बहुत गन्दगी है, यह बात हम दूर बैठकर नहीं कह सकते, हमें स्वयं ज़िम्मेदारी लेनी होगी अगर गन्दगी है तो उस गन्दगी को साफ़ करने के लिए ख़ुद उसमें उतरना भी होगा, महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे। दूर से सिर्फ़ बातें करते रहना आसान है नि:स्वार्थ भाव से समाज में कार्य करने वालों का अभाव है । मैं बस अपनी प्रतिबद्धता को समझते हुए समाज के लिए और अपने देश के लिए कार्य कर रही हूँ भविष्य के गर्भ में मेरे लिये क्या है, यह कोई नहीं जानता।
आप एनजीओ से भी जुड़ी हुई हैं..समाज सेवा को कोई ख़ास उद्देश्य।
समाज सेवा का उद्देश्य सिर्फ़ आत्म संतुष्टि और समाज का हित होता है। एनजीओ बस एक माध्यम है अपने लोगों के लिए, समाज के लिए और देश के लिए कार्य करने का और कोई उद्देश्य नहीं है। मेरा मानना है कि सब अपने-अपने सामर्थ्य से अगर थोड़ा-थोड़ा भी समाज हित में योगदान दें, तो तस्वीर बदली जा सकती है।
आपका प्रोफेशन और फिलहाल जो काम आप कर रही हैं..दोनों अलग अलग है..कैसे तालमेल बिठाती हैं
जी, जब सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यकर्ता के रूप में स्वयं को लीन कर लिया तब डॉक्टरी या यूँ कह लीजिए कि कॉलेज की जॉब से ख़ुद को मुक्त कर लिया।
वर्तमान में पूर्ण रूप से सामाजिक कार्यकर्ता एवं लेखिका के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाहन करती हूँ। किन्तु मैं यहाँ यह भी कहना अवश्य चाहूंगी कि आपकी योग्यता कभी व्यर्थ नहीं जाती, आज भी सामाजिक कार्यों के अंतर्गत बहुत से हैल्थ कैम्प आयोजित कर रही हूँ, शिक्षा के छेत्र पर भी ख़ासा कार्य करती हूँ, वूमन हाइजीन जैसे कम छुए जाने वाले विषयों को लेकर नामी अस्पतालों के साथ मिलकर वर्कशॉप कार्यशालाएं इत्यादि करना भी इसमें बख़ूबी शामिल है। साथ ही एक लंबे समय से माँ हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं कला संस्कृति साहित्य के संवर्धन हेतु निरंतर नि:स्वार्थ कार्य कर रही हूँ ।
बचपन से क्या सोचा था आपने , बड़ी होकर क्या करेंगी
सच कहूं तो बचपन से लेकर अब तक, कभी यह नहीं सोचा कि मैं बड़ी होकर क्या करूँगी किंतु कुछ बातें बड़ी स्पष्ट रही जीवन में, जैसे हमारे पिता जी द्वारा हमेशा एक सीख दी गई, कि “अगर आप अपने जीवन में मोची भी बने है किन्तु यदि दुनिया के बेस्ट मोची न बन सके तो उसका कोई अर्थ नहीं” । यानी आप कोई भी कार्य चुने , कोई भी आयाम चुने अगर वो पर्फेक्शन के साथ और पूरे मनोयोग से आप नहीं कर रहें हैं तो वह व्यर्थ है।
और जहाँ तक बनने की बात है, तो जीवन में सिर्फ़ और सिर्फ़ यह उद्देश्य मुख्य रहा, कि मेरा जीवन किसी के काम आ सकें । बस ऐसे कार्य करने हैं जिससे मरणोपरांत भी अपनी छाप छोड़कर जा सकूँ। लोगो के दिलों में स्थान प्राप्त कर सकूँ, दुनिया से जाने के बाद भी , ज़िंदा रह सकूँ। मैं जीवित रहूँ, या न रहूँ मेरे द्वारा किए गए कार्य सदैव जीवित रहें।
अपनी फैमिली के बारे बताइए
राजधानी दिल्ली की पैदाइश हूँ, यहीं पली बड़ी और फिर मेडिकल की शिक्षा हेतु लगभग चौदह वर्ष विभिन्न राज्यों में रही। अध्यापक परिवार से आती हूँ । पिता जी श्री ईश कुमार गंगानिया दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन एचओएस की पोस्ट से सेवानिवृत्त हैं और अपने लेखन के माध्यम से देश भर में एक सशक्त पहचान रखते हैं। वो लगभग दो दर्जन से भी अधिक सामयिक पुस्तकों के रचियता हैं। माँ शशि गंगानिया भी दिल्ली एडमिनिस्ट्रेशन में ही बतौर अध्यापिका कार्यरत रही और वे भी अब सेवानिवृत्त है। मायका पक्ष से कहें तो शुरू से ही पूरा परिवार अध्यापन में ही रहा है। विवाह उत्तरप्रदेश से श्रीमान प्रदीप कुमार सिंह जी से हुआ। वे आईआईटी रुड़की एवम् आईआईटी खड़गपुर से पढ़े और वर्तमान में पिछले एक दशक से बतौर सीनियर चीफ़ इंजीनियर सैमसंग कंपनी में कार्यरत हैं। ईश्वर की असीम कृपा से दो बेहद दुलारे बच्चों की माता होने का सौभाग्य भी हमें प्राप्त है ।
आपके पति जो खुद IIT से हैं..आपके काम को लेकर उनकी सोच
मैं हमेशा ही अपने हर साक्षात्कार में यही कहती आयी हूँ कि किसी भी लड़की या महिला को जो पहले पंख होते है वो पिता प्रदान करते हैं और दूसरे पति। हर सफल महिला या लड़की के पीछे बहुत साहसी पिता और पति का साथ अवश्य होता है। मैं बेहद सौभाग्यशाली हूँ की मुझे बेहद साथ देने वाले, मेरे हर कार्य, हर आयाम में बराबर का योगदान देने वाले जीवनसाथी मिले। अगर मैं यह कहूँ की कभी कहीं जब भी किसी मोड़ पर मेरा साहस या हिम्मत डगमगाने लगती है तब जीवनसाथी प्रदीप मुझमें हिम्मत भरते हैं, उनका साथ मुझे असीम बल प्रदान करता है तो यह क़तई अतिश्योक्ति नहीं होगी ।
आगे चलकर क्या करना है..क्योंकि आपने बेहद कम समय में इतना कुछ हासिल किया है
सर्वप्रथम तो मैं आपका आभार ज्ञापित करती हूँ कि आप मेरी इस उपलब्धि को मेरे द्वारा किए गए छोटे-छोटे प्रयासों को बेहद बड़ा और सार्थक कर रहे हैं पर यक़ीन मानिए, मुझे ऐसा प्रतीत होता है की अभी कुछ नहीं कर पायी हूँ अभी सब शेष है जो विशेष है अभी तो मैं बिल्कुल एक बालक की भाँति घुटने चलना सीख रही हूँ । मुझे पहले घुटने चलना है फिर पाँवों को जमाकर चलना है और फिर दौड़ना भी बाक़ी है। अभी तो बहुत काम बाक़ी है ।
साहित्य की तरफ आपकी गहरी रुचि है, कुछ उसके बारे में बताइए
जैसे की मैंने, पहले ही बताया की साहित्य की प्रेरणा मुझे बचपन से ही अपने पिता से प्राप्त है। उन्हीं से प्रेरणा पाकर में दसवी कक्षा से लेखन कर रही हूँ । साहित्य मेरे लिए रुचि का विषय कम और ज़िम्मेदारी का या कहें प्रतिबद्धता का विषय ज़्यादा है। साहित्य समाज का आईना होता है व चेतना जागृत करने का पुनीत कार्य करता है, यही कारण है कि मेरा मानना है हर साहित्यकार का यह परम् धर्म होना चाहिए की वह अपने कवि / लेखन धर्म को निभाते हुए समाज में हो रही कुरीतियों पर अपनी क़लम की धार से वार करे। आपको बताती चलूँ की माँ वीणावादिनी के आशीर्वाद से छह पुस्तकों का सृजन कर चुकी हूँ साथ ही कुछ पुस्तकों का संपादन भी मेरे द्वारा किया गया है। तीन पुस्तकें मेडिकल के लिए भी लिखीं साथ ही राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रिसर्च शोध पेपर भी लिखें जो अनेकानेक जर्नल्स में प्रकाशित भी हुए ।
युवाओं को खास संदेश
युवाओं को मेरा एकमात्र यही संदेश है – आप अपने जीवन में जो भी लक्ष्य निर्धारित करें, उसके लिए पूरे मनोयोग व तनम्यता से स्वयं को समर्पित करें। इस दुनिया में कोई भी ऐसा लक्ष्य नहीं है जो आपके लिए मुमकिन न हो, कोई भी ऐसी बाधा नहीं है जो आपके साहस से बड़ी हो। आप आने वाली पीढ़ियां को, आने वाली नस्लों को, ऐसा उदाहरण स्थापित करके दीजिये कि वो न सिर्फ़ आपके पदचिन्हों पर चलें अपितु आप पर नाज़ कर सकें, आपसे प्रेरणा ले सकें।
डॉ. पूजा सिंह गंगानिया, ख़बरी मीडिया से बात करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।