mumbai engineer shrinivas commits suicide

Mumbai: इंजीनियर श्रीनिवास..कार रोकी..फिर अटल सेतु से कूद गए

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Mumbai के इंजीनियर की दर्द भरी कहानी

Mumbai के इंजीनियर की दर्द भरी कहानी सामने आई है। आखिर क्या मजबूरी रही होगी कि इंजिनियर ने जिंदगी की जगह मौत का रास्ता अपनाया। इंजीनियर श्रीनिवास ने अटल सेतु मुंबई पर अपनी कार रोकी और समुद्र में कूदकर जान दे दी। बताया जा रहा है कि श्रीनिवास बुधवार रात करीब साढ़े 11 बजे घर से निकले थे. रास्ते से उन्होंने पत्नी और चार साल की बेटी से फोन पर बात की थी. मगर किसी को अंदाजा नहीं था कि वह खुदकुशी करने जा रहा है। श्रीनिवास की मौत की वजह आर्थिक तंगी बताई जा रही है।

pic-social media

38 साल के श्रीनिवास डोंबिवली में रहते था। श्रीनिवास ने खुद को समाप्त कर लिया, लेकिन अपनी पत्नी और बेटी के लिए कितनी मुसीबत खड़ी कर गया। सोचिए वह फ्लैट में रहता था, कार से चलता था, किंतु कर्ज के बोझ तले भी दबा हुआ था। एक इंजिनियर इतना तो कमा ही सकता था तीन लोगों का पेट पाल सके। लेकिन वह जीवन से हार मान गया।

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शहर में रहने वाला मध्यमवर्गीय कथित शिक्षित युवा आज के दौर में सबसे अधिक मानसिक तनाव का शिकार है। दिखावे की जिंदगी जीने को लालायित युवा अति महत्वाकांक्षा का इतना शिकार है कि समाज में दिखावे की जिंदगी जीने के लिए, अपने दोस्तों के बीच अपनी झूठी शान दिखाने के लिए कर्ज के बोझ तले दबने लगता है। क्रेडिट कार्ड और EMI का भ्रमजाल भौतिक सुख सुविधा का दिवा स्वप्न दिखा देते हैं।

महानगरों में चंद साल व्यतीत करने पर जीरो एडवांस पर महंगे फ्लैट उपलब्ध हैं। बिल्डर अपना पैसा लेकर किनारे हो जाते हैं और बैंक की ईएमआई शुरू हो जाती है। फ्लैट की सजावट सुख सुविधा के लिए सबकुछ ईएमआई पर उपलब्ध है। लेकिन जब किस्त भरने का सिलसिला शुरू हो जाता है तो न फ्लैट का सुख मिलता है और न ही सजावटी सामानों का।

बनावटी जीवन के दिवा स्वप्न ने सबसे अधिक इन्हीं युवाओं का जीवन नर्क बनाया है। दिखावे की जिंदगी जीने की चाहत एक ऐसे जाल में फांस लेती है जो जिंदगी को ही खत्म करने के बारे में सोचती है। श्रीनिवास यदि अपने परिवार से, अपने मित्रों से चर्चा करता तो कोई रास्ता निकल सकता था। उसकी पत्नी और बेटी शायद बेसहारा नहीं होती। लेकिन अंदर ही अंदर घुट रहे श्रीनिवास को जिंदगी को नकार कर मौत चुनना ही आसान लगा।

डिजिटल युग में हम समाज से अलग हो गए। परिवार से अलग हो गए। अपनों से विचार विमर्श करना छोड़ दिए। यह एकांकी जीवन आखिर हमें किस ओर ले जा रहा है….?