अमेरिका में 13 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर एक चुनावी रैली में गोलियां चलीं। 20 साल के हमलावर ने 400 फीट दूर से 8 राउंड गोलियां फायर कीं। इनमें से एक गोली ट्रम्प के दाहिने कान को चीरते हुए निकल गई। पूर्व राष्ट्रपति का चेहरा खून से सना था, फिर भी वे अपनी मुट्ठी भींचे हुए फाइट-फाइट चिल्लाते रहे। आरोपी को सीक्रेट सर्विस के एजेंट्स ने मौके पर ही ढेर कर दिया।
अमेरिका में चुनावी माहौल के बीच हुए इस हमले पर कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं। एक तरफ ट्रम्प की पार्टी बाइडेन और डेमोक्रेट्स पर हमला करवाने के आरोप लगा रही है। वहीं, सोशल मीडिया पर कई लोगों का कहना है कि ये हमला खुद ट्रम्प ने ही करवाया है।
पहली वजह- अटैक का तरीका
डोनाल्ड ट्रम्प पर हमलावर ने असॉल्ट राइफल AR 15 से हमला किया। इस गन से ट्रम्प पर पहली बार में 3 राउंड फायर किए गए। इनमें से एक बुलेट ट्रम्प के कान को छूती हुई निकल गई। ट्रम्प के कान से खून निकला और वे तुरंत मंच पर झुक गए।
ट्रम्प के झुकने के बाद उन पर दूसरी बार में 5 राउंड फायर किया गया। इसी बीच ट्रम्प की सुरक्षा में तैनात सीक्रेट सर्विस के जवानों ने उन्हें कवर किया और दूसरी तरफ से हमलावर को मार गिराया।
तर्क- अगर ट्रम्प को कान पर ही गोली मरवानी होती तो वे असॉल्ट राइफल की जगह एकदम सटीक निशाने पर लगने वाली स्नाइपर गन से हमला करवाते। असॉल्ट गन के इस्तेमाल में निशाना चूकने का डर रहता है। ऐसे में गोली कान की जगह शरीर के किसी दूसरे हिस्से में भी लग सकती थी।
स्नाइपर गन की तुलना में असॉल्ट राइफल की एक्यूरेसी कम होती है। ट्रम्प कभी भी इतना बड़ा खतरा नहीं उठाएंगे कि एक कम एक्यूरेसी की राइफल से खुद पर हमला कराएं। ऐसी स्थिति में गोली उनके सिर को भी भेद सकती थी और उनकी मौके पर ही मौत जाती।
स्नाइपर गन से एक बार में एक ही राउंड फायर किया जा सकता है। दूसरी बार फायर करने से पहले उसे लोड करना पड़ता है। इसकी वजह से उसकी स्टेबिलिटी अधिक होती है। यानी फायर करने के दौरान वो हिलती-डुलती नहीं है जिससे गोली सटीक निशाने पर लगती है।
वहीं असॉल्ट राइफल AR 15 एक ऑटोमेटिक गन है, इससे एक मिनट में 800 राउंड तक फायर किए जा सकते हैं। इसके कारण इसकी स्टेबिलिटी उतनी अधिक नहीं होती है। फायरिंग के दौरान इसमें काफी मूवमेंट होता है, इसके चलते सटीक निशाना लगाने में दिक्कत आती है।
दूसरी वजह- चुनाव जीतने के लिए सहानुभूति की जरूरत नहीं
ट्रम्प पर हुए हमले को लेकर दावा किया जा रहा है कि उन्होंने चुनाव में सहानुभूति लेने के लिए खुद पर हमला कराया है। डोनाल्ड ट्रम्प जनता की सहानुभूति लेकर चुनाव में वोट हासिल करना चाहते हैं। हालांकि इस दावे में सच्चाई कम ही नजर आती है।
तर्क- पिछले महीने डोनाल्ड ट्रम्प की राष्ट्रपति बाइडेन के साथ हुई डिबेट के बाद से ही उन्हें राष्ट्रपति पद के लिए प्रमुख दावेदार माना जा रहा है। डिबेट के बाद हुए पोल में 67% लोगों ने ट्रम्प को जबकि 33 प्रतिशत लोगों ने बाइडेन को डिबेट का विजेता माना था।
ट्रम्प के खिलाफ खड़े बाइडेन, अप्रूवल रेटिंग में पिछले एक साल में उनसे पिछड़ते नजर आए हैं। CNN के एक पोल के मुताबिक अमेरिका में 49% लोग ट्रम्प को अगले राष्ट्रपति के तौर पर पसंद कर रहे हैं। जबकि बाइडेन सिर्फ 43% की पसंद हैं।
वहीं CNN के ही एक दूसरे पोल में 75% लोगों ने बाइडेन को डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर नकार दिया। सिर्फ 25% लोग ही बाइडेन के समर्थन में दिखे। डोनाल्ड ट्रम्प बाइडेन पर पहले ही राजनीतिक तौर पर बढ़त बनाए हुए हैं। ऐसे में ट्रम्प को सहानुभूति के लिए खुद पर हमला कराने की जरूरत नहीं है।
तीसरी वजह- सिक्योरिटी का जिम्मा सीक्रेट सर्विस के पास, ट्रम्प के पास कोई अधिकार नहीं
डोनाल्ड ट्रम्प अपनी ही सिक्योरिटी को चकमा देकर खुद पर हमला नहीं करवा सकते हैं। उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सीक्रेट सर्विस के पास होती है, जो किसी भी दौरे से पहले उस जगह का मुआयना करते हैं। इसके अलावा अधिकारी ही सुरक्षा से जुड़ा एक प्लान तैयार करते हैं। ऐसे में अपनी ही सुरक्षा को भेद पाना ट्रम्प या उनके किसी भी साथी के लिए आसान नहीं होता।
तर्क- डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति है ऐसे में उनकी सुरक्षा का जिम्मा सीक्रेट सर्विस के पास है। ये सीक्रेट सर्विस अमेरिका की फेडरल एजेंसी है जो सरकार के अंतर्गत आती है।
सीक्रेट सर्विस के अलावा FBI और स्थानीय पुलिस भी पूर्व राष्ट्रपतियों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार होती हैं। पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा में 75 अधिकारी चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं। उनकी आवाजाही के लिए स्पेशल फोर्स हमेशा साथ रहती है। ऐसे में किसी भी पूर्व राष्ट्रपति का अपने ही सुरक्षा घेरे को तोड़कर खुद पर हमला करवाना आसान नहीं है।
साभार: (दैनिक भास्कर))