मेहनत है तो मुमकिन है
कहते हैं जितना किस्मत में लिखा है, उससे ज्यादा कुछ हासिल नहीं हो सकता। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है जो अपनी मेहनत के दम पर हाथों की लकीरों को भी बदल देते हैं। उनमें से एक नाम है भोपाल के सुनील साल्वे।
सुनील को पढ़ाई में सफलता नहीं मिलने की भविष्यवाणी की गई थी। शुरुआती दौर में ये बात काफी हद तक सच भी साबित हुई। इसके पीछे की वजह भी जान लीजिए। सरकारी स्कूल से पढ़ाई करने वाले सुनील साल्वे अंग्रेजी और गणित में कमजोर होने की वजह से 10वीं की कक्षा में फेल हो गए। ये साल 1990 की बात है। 1991 में उन्होंने दोबारा बोर्ड की परीक्षा दी, लेकिन अंग्रेजी में कमजोर होने की वजह से सप्लीमेंट्री आ गई। सुनील साल्वे ने किसी तरह दसवीं की परीक्षा पास की। कम नंबरों की वजह से सुनील के आगे पढ़ने की इच्छा खत्म हो गई। वो कही हुई भविष्यवाणियों को सच मानने लगे थे। ऐसे में सुनील वक्त जाया ना करते हुए अपने मित्र की सलाह पर भवन निर्माण का काम शुरू किया, जिसमें सरिया बांधने से लेकर चुनाई, प्लास्टर शामिल था। लेकिन कुछ ही दिनों में सुनील को इस काम से उबन होने लगी। फिर उन्हे ख्याल आया ज़िंदगी में कुछ और बेहतर कर सकते है। पढ़ने की ललक में सुनील ने 1996 में 12वीं की परीक्षा पत्राचार(correspondence) से दी। इस परीक्षा में भी सुनील फेल हो गए। सुनील ने 1997 में फिर से एग्जाम दिया, लेकिन इस बार भी फेल हो गए। लेकिन सुनील ने हिम्मत नहीं हारी। तीसरे साल 1998 में सुनील ने एक बार फिर अपनी किस्मत को आजमाया। सुनील ने इस बार काम से ब्रेक लेकर पढ़ना शुरू कर दिया। सुनील की मेहनत रंग लाई। सुनील ने सेंकेंड डिवीजन से 12वीं की परीक्षा पास कर ली। उसके बाद सुनील ने एक कॉलेज में ग्रैजुएशन के लिए आवेदन दिया, लेकिन उनका फॉर्म निरस्त हो गया।
सुनील साल्वे ने हार नहीं मानी और प्राइवेट कॉलेज का फॉर्म भरा। सुनील के मित्रा ने उन्हें अंग्रेजी साहित्य लेने के लिए प्रेरित किया। लेकिन अंग्रेजी कमजोर होने की वजह से सुनील ने अंग्रेजी साहित्य लेने से मना कर दिया। लेकिन सुनील के दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि जब दूसरे अंग्रेजी पढ़ और बोल सकते हैं तो वो क्यों नहीं। इसी धुन में सुनील बाजार गए, इंग्लिश ग्रामर, ट्रांसलेशन की ढेर सारी किताबें खरीद लाए। और उन्हें पढ़ने में रात दिन एक कर दिया। सुनील की मेहनत रंग लाई, उन्होंने फर्स्ट ईयर का एग्जाम अच्छे नंबरों से पास कर लिया। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। बी.ए फाइनल के एग्जाम में सुनील को अंग्रेज़ी साहित्य में 73 परसेंट नंबर मिले। ग्रैजुएशन के बाद माखनलाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय(Makhanlal National University of Journalism) में दाखिला ले लिया। और यहां से विज्ञापन एवं जनसंपर्क(Advertising and Public Relation) से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। और फिर सुनील ने English literature में एम ए किया।
इसके बाद शुरु हुआ सुनील साल्वे का मीडिया करियर। सुनील को “द ट्रिब्यून“(The Tribune) अंग्रेज़ी अखबार के संपादकीय विभाग(Editorial Department) में ट्रेनिंग ली। उसके बाद सुनील ने कई अखबारों के लिए काम किया, जिनमें “सेंट्रल क्रोनिकल”(Central chronicle), “हिंदुस्तान टाइम्स“(Hindustan Times), और “फ्री प्रेस”(Free Press) शामिल है। सुनील साल्वे फिलहाल एक जानी मानी अंग्रेजी वेबसाइट में समाचार संपादक के रूप में कार्यरत है।
सुनील, जिन्हें अंग्रेजी नहीं आती थी, अब 5 भाषाएँ हिंदी, मराठी, अंग्रेज़ी, ऊर्दू, और फ़ारसी जानते है। सुनील अपने ख़ाली समय में ऊर्दू में कविताएं भी लिखतें है। उनके लिखने-पढ़ने सीखने का जुनून उनके लिए प्रेरणा का बड़ा स्रोत है। युवाओं के लिए सुनील साल्वे ने बड़ी नजीर पेश की है।
खबरी मीडिया की तरफ से सुनील साल्वे को ढेर सारी शुभकामनाएं।
अर्चना साल्वे, भोपाल ब्यूरो
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