लता की नायिकाएं

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लगभग पचास वर्षों के गायन में लता ने दर्जन भर बड़ी अभिनेत्रियों को स्वर दिया।यह बात और है कि समानांतर फिल्मों की तरह कुछ अन्य महत्वपूर्ण, किन्तु जो स्टार सरीखी अभिनेत्रियां नहीं रहीं, जैसे जया,विद्या सिन्हा,राखी आदि भी उनके ही कंठ से याद रह गईं। यह संपूर्ण भारतीय सिने इतिहास की विलक्षण और अविश्वसनीय सी घटना मालूम पड़ती है। उन्होंने अपनी आवाज़ से जिन बड़ी अभिनेत्रियों के अभिनय को हमारी स्मृति में अमिट कर दिया, उनमें से सबसे पहले मैं साधना को चुन रहा। इसलिए नहीं कि साधना क्लासिक ब्यूटी थी। या सबसे बड़ी स्टार अथवा महान अभिनेत्री थीं। इसलिए कि साधना अपनी साधारणता में लता का दिव्य स्वर पाकर असाधारण हो उठी हैं।

मैं परख फिल्म का चिरस्मृत गीत, ओ सजना बरखा बहार आई, यहां सबसे पहले रखता हूं।अपने निजी विचारों से अगर मैं कहूं कि इस गीत और इस गीत में विशुद्ध भारतीय परिधान में दिखाई पड़ रही साधना ने मुझे सदैव जड़ीभूत किया है तो वह अतिशयोक्ति नहीं। जब पहली बार वह फ्रेम में स्पष्ट रूप से उभर कर गाती है, अंखियों में प्यार लाई तब मैं सोचता हूं कि क्यों न संसार की हर स्त्री को ऐसा ही निर्मल रूप मिले। किन्तु वह निर्मलता लता के स्वरों के बिना कहां उभर पाती। उसी गीत का अगला अंतरा है,ऐसे रिमझिम में ओ सजन प्यासे प्यासे मेरे नयन.. यहां मैं अपना हृदय हार जाता हूं। जब-जब इस गीत को देखता सुनता हूं तो इस अंतरे पर मेरा हरण हो जाता है। मैं सोचता हूं कि प्रेमिका हो,परिणीता हो तो बस ऐसी।

दूसरा गीत है, तेरा मेरा प्यार अमर। असली नकली फिल्म का यह गीत लगभग उसी कोटि का है। यहां भी साधना का लावण्य हमारे प्रेमलोक में उथल-पुथल मचाकर बहा ले जाता है। चलती हूं मैं तारों पर…जैसा कि मैंने पिछले लेखों में कहा है कि लता अपने रोमांटिक गानों में भी एक पैथॉस, अपरिभाषित नश्वरता बोध को ध्वनित करती हैं इसलिए प्रेम प्रकट करने वाले इस उत्फुल्ल गाने को सुनकर भी मन आह से भर उठता है। साधना का सरल रूप लता के कंठ का परिधान पाकर दैवीय हो जाता है। गाना जब समाप्त होता है, तो उसे पुनः सुनने के लिए अंगुलियां स्वत: यूट्यूब पर चली जाती हैं।

तीसरा गीत है, लग जा गले। इस जादूगरी पर मैं क्या लिखूं। यह गीत तो रोमांस की शास्त्रीय परिभाषा बनकर स्थापित है। पिछले साठ वर्षों में प्रणय निवेदित करने के लिए इससे अच्छा कुछ गाया गया है क्या? यहां साधना अपने निर्मल धवल रूप से हर ली गई हैं। उन पर साधना कट चढ़ा दिया गया है, जिसे व्यक्तिगत रूप से मैं नापसंद करता हूं। किन्तु यह तो लता के अविनाशी स्वर का कमाल है कि साधना इस गीत से भारतीय प्रशंसकों के चित्त में ठहर सी गई हैं। पिछले चालीस वर्षों में इसे शत-शत बार सुनते हुए मैं अपने-आप में न रह सका। एक कल्पना लोक मेरे मन मस्तिष्क पर छाया रहा।

चौथा गीत इसी फिल्म का है। नैना बरसे रिमझिम रिमझिम। इस गाने में भी साधना परख और असली-नकली जैसी दिव्या नहीं दिखाई देतीं किन्तु लता अपने गायन से उन्हें अमर कर देती हैं। यह साधना का सौभाग्य था कि करियर के प्रारंभ से अंत तक स्वरलता उन्हें घेरती रही।

पांचवां गीत है, नैनों में बदरा छाए। यह कलर फिल्म का गाना है। जिसमें साधना अपने रूप लावण्य को पुनः पाती हुई दिखाई देती हैं। अत्यंत मादक, मोहक। लेकिन रूपराशि का जादू उन दिव्य स्वरों के बिना कहां चल पाता है । जो उठान उसे लता के आरोही अवरोही स्वरों से मिलता है, वह बेजोड़ है। नायक तो फ्लैशबैक से वर्तमान के भ्रम में आता है।दूर कहीं झील के उस पार से गूंजती एक आवाज़ धीरे-धीरे इसी धरती की हो जाती है। दर्शक स्तम्भित होकर देखते सुनते हैं। धरती से ऊपर उठ जाते हैं।

यूं साधना के लिए लता जी ने और भी कई सुन्दर गाने गाए लेकिन मुझे ये पांच गीत प्रतिनिधि गीत के रूप में ध्यान आते हैं। परख वाले गीत में साधना का सौन्दर्य लता के लास्य से अनश्वर हो उठा है। मुझे लगता है कि भारत के युवाओं में जब तक थोड़ी भारतीयता बची रहेगी तब तक वह गीत उन्हें मथता मोहता रहेगा। अंत में यह भी कहना आवश्यक ही जान पड़ता है कि बिमल दा ने अपनी दृष्टि से उस गाने को अनमोल बनाया। वह जानते थे कि किस क्षण नायिका के विमल मुख को चारुहास से मंडित कर कैमरे के सामने उभारना है और किस क्षण उसे बैकग्राउंड में ले जाना है।

वरिष्ठ पत्रकार देवांशु झा के फेसबुक वॉल से साभार

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