अमेठी से राहुल गांधी का ‘वॉक ओवर’ अब मां सोनिया की सीट पर मचाएंगे बवंडर!

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Amethi Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 के 2 चरण की वोटिंग (Voting) हो गई है और तीसरा चरण 7 मई को होना है। लेकिन उससे पहले सियासी गलियारों में जिस अमेठी (Amethi) और रायबरेली सीट के उम्मीदवारों के नाम का इंतजार था वो अब खत्म हो गया है। कांग्रेस (Congress) ने इस बार अपनी परंपरागत सीट पर ऐतिहासिक बदलाव करते हुए रायबरेली से पहली बार राहुल गांधी को उम्मीदवार बनाया जो 2004, 2009 और 2014 में इस सीट से सांसद रह चुके है। लेकिन 2019 में बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार मिलने के बाद राहुल गांधी (Rahul Gandhi) ने 2024 में अपनी सीट बदल ली है। अब अमेठी से कांग्रेस ने राहुल गांधी के बदले केएल शर्मा (KL Sharma) को उम्मीदवार बनाया है जो गांधी परिवार के काफी करीबी बताए जा रहे हैं। पढ़िए पूरी खबर…
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कांग्रेस और राहुल गांधी के इस फैसले के बाद अमेठी के कांग्रेस कार्यकर्ता अचंभित होने के साथ-साथ नाराज भी हैं। तो वहीं बीजेपी खुलकर हमला कर रही है और कह रही है कि राहुल गांधी हार की डर से सबसे महफूज सीट पर चुनाव लड़ने जा रहे है लेकिन उन्हें वहां भी हार की खानी पड़ेगी।

सोनिया गांधी के चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा के बाद से रायबरेली सीट पर कई प्रकार के दावे किए जा रहे थे। दावा यह भी किया जा रहा था कि कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को इस सीट से उम्मीदवार बनाया जा सकता है। हालांकि, गांधी परिवार की सहमति के बाद कांग्रेस ने इस सीट पर राहुल गांधी की उम्मीदवारी तय कर दी है। राहुल गांधी रायबरेली से अब अपनी राजनीति को आगे बढ़ते दिख सकते हैं।

अब राहुल का मुकाबला यहां बीजेपी के दिनेश प्रताप सिंह से होगा जो राहुल गांधी को पटखनी देने की पूरी तैयारी में है।राहुल गांधी केरल की वायनाड लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ रहे हैं। पिछली बार वे वायनाड से ही जीते थे। वायनाड में मतदान हो चुका है। अमेठी और रायबरेली में 20 मई को मतदान है।

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी 1999 के लोकसभा चुनावों तक अमेठी सीट से चुनाव लड़ती थीं। इसके बाद 2004 में उन्होंने राहुल के लिए यह सीट छोड़ी और रायबरेली का रुख किया। राहुल ने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में अमेठी से आसान जीत दर्ज की। 2014 में जरूर राहुल को स्मृति ईरानी ने टक्कर दी, लेकिन हरा नहीं पाईं।

हालांकि, 2019 में राहुल ने अमेठी के अलावा वायनाड से भी चुनाव लड़ा। अमेठी में उन्हें स्मृति ईरानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वे वायनाड से जीतकर लोकसभा पहुंचे।लोकसभा चुनाव 2024 में भी वायनाड से वे चुनावी मैदान में हैं। हालांकि, इस बार उन्हें इस सीट पर माकपा से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कांग्रेस राहुल के लिए रायबरेली को सुरक्षित सीट मान रही है।

रायबरेली लोकसभा सीट पर इस बार राहुल गांधी को भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार दिनेश प्रताप सिंह का सामना करना पड़ेगा। दिनेश प्रताप सिंह ने 2019 के लोकसभा चुनाव में सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी। इस चुनाव में सोनिया गांधी 5,34,918 वोट हासिल करने में कामयाब रही थीं। वहीं, भाजपा से दिनेश प्रताप सिंह 3,67,740 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर थे। सोनिया 1,67,178 वोटों से जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थीं। मोदी लहर में लोकसभा चुनाव 2014 में भी सोनिया गांधी ने इस सीट से बड़ी जीत दर्ज की थी।

रायबरेली सीट का इतिहास

1952 से लेकर 2019 तक के रायबरेली के चुनावी इतिहास में ऐसा सिर्फ तीन बार ही हुआ है जब कांग्रेस को यहां से हार का सामना करना पड़ा हो। बीते छह आम चुनाव में कांग्रेस (Congress) को यहां से लगातार जीत हासिल हुई है। इसकी शुरुआत 1999 में कांग्रेस उम्मीदवार सतीश शर्मा की जीत से हुई थी। इसके बाद 2004 से लेकर अब तक सोनिया गांधी यहां से सांसद रही हैं। अगर बात इस सीट के चुनावी इतिहास की करें तो रायबरेली में सबसे पहली बार चुनाव 1952 में कराए गए थे। और तब यहां से कांग्रेस के उम्मीदवार फिरोज गांधी सांसद चुने गए थे। फिरोज गांधी 1957 में भी यहां से सांसद रहे।

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अगर बात 1960 और 1962 में हुए चुनाव की करें तो इस सीट पर कांग्रेस का ही कब्जा रहा था। 1960 के चुनाव में यहां से आर पी सिंह जबकि 1962 में बैजनाथ कुरील यहां से सांसद बने। 1967 और 1971 के आम चुनाव की बात करें तो इस सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार इंदिरा गांधी जीतकर संसद पहुंची थी। जबकि 1977 में पहली बार कांग्रेस को यहां हार का सामना पड़ा था।

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उस दौरान जनता पार्टी के राज नारायण जीतकर संसद पहुंचे थे। कांग्रेस की हार के पीछे आपातकाल के दौरान सरकार द्वारा की गई सख्ती को बताया जाता है। वहीं 1980 में हुए आम चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की। और इंदिरा गांधी यहां से फिर संसद पहुंचीं। 1980 से लेकर 1991 तक हुए चार बार आम चुनाव में भी यह सीट कांग्रेस के पास ही रही।

भारतीय जनता पार्टी को 1996 में पहली बार कांग्रेस के इस ‘किले’ को फतेह करने में सफलता हासिल हुई। 1996 में बीजेपी के अशोक सिंह यहां से सांसद बने, 1998 में भी अशोक सिंह ही यहां से संसद पहुंचे। लेकिन 1999 में हुए आम चुनाव में एक बार फिर ये सीट कांग्रेस के पास पहुंच गई। और यहां से सांसद चुने गए सतीश शर्मा। इसके बाद 2004, 2006, 2009, 2014 और 2019 में कांग्रेस की वरिष्ठ नेता और पार्टी की पूर्व अध्यक्षा सोनिया गांधी को यहां से जीत हासिल हुई है।

रायबरेली सीट का जातीय समीकरण

रायबरेली लोकसभा सीट के जातीय और सामाजिक समीकरणों की बात करें तो यहां करीब 11 फीसदी ब्राह्मण, करीब 9 फीसदी राजपूत, 7 फीसदी यादव वर्ग के मतदाता हैं। यहां दलित वर्ग के मतदाताओं की तादाद सबसे अधिक है। रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में कुल करीब 34 फीसदी दलित मतदाता हैं। यहां मुस्लिम 6 फीसदी, लोध 6 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी के करीब हैं। अन्य जाति-वर्ग के मतदाताओं की तादाद भी करीब 23 फीसदी होने के अनुमान हैं।

हिंदी बेल्ट में उम्मीदवार की जाति देखकर या राजनीतिक दल देखकर वोट करने का ट्रेंड भी रहा है लेकिन रायबरेली में गांधी परिवार से किसी सदस्य के चुनाव लड़ने पर जाति का फैक्टर जीरो नजर आया है। लेकिन इस बार बीजेपी इसी जातीय समीकरण के आधार पर कांग्रेस को घेरने की तैयारी में है। ऐसे में रायबरेली सीट की लड़ाई किसी भी तरीके से राहुल गांधी के लिए आसान नहीं होने जा रही है।